




2025-12-07 13:37:00
संसार किसी के बगैर रुकता नहीं है, सामान्य समझ रखने वालों की दृष्टि में यही सत्य है परन्तु संसार में कुछ ऐसे व्यक्तियों ने भी जन्म लिया है जिनके बगैर निश्चय ही मानवता के विकास का चक्र रुक जाता या फिर दिशाहीन हो जाता, डॉ. आंबेडकर उनमे से ही एक नाम है। आज जिस प्रकार से संविधान की अवहेलना की जा रही है,दलितों पर प्रताड़ना के मामले बढ़ रहे है, महिलाओं की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता से गायब है, अच्छी शिक्षा-स्वास्थ्य की बात करना तो अब बेमानी सी हो गई है। न्याय कोर्ट नहीं सत्ता में बैठे लोग कर रहे है। अल्पसंख्यक गद्दार घोषित हो चुके है, कोई जाति महान है तो कोई जाति हिन बन चुकी है। यह सब तब है जब की संविधान में इन सबके विषय और अधिकार की बातें स्पष्ट तौर पर संरक्षित है, लेकिन आम नागरिकों के बीच इस हाहाकार भरे समाज में (जो राजनितिक है) ऐसी धारणाएं बनाई जा चुकी है कि हमारे संविधान में ही कमी है इसलिए सरकार के लोग बार-बार नए संविधान के रचना की बात करते रहते है। इसलिए आवश्यक है कि हम ‘जय भीम’ कहने से, उनकों पूजने से ज्यादा उनकों पढ़े।
क्या कारण है की आज भी आंबेडकर की प्रतिमाएं सिर्फ दलितों की ही बस्तियों तक सीमित है, उनका जन्मोत्सव मनाने का उत्साह सिर्फ दलितों में ही देखने को मिलता है? आज भी सामान्य भारतीयों के भीतर यही बात जड़वत है कि आंबेडकर अंबेडकर ने सिर्फ दलितों के हित के लिए ही कार्य किया है, और हमने उनकी तमाम उपलब्धियों को दलित तक ही सीमित कर दिया जबकि सच्चाई यह है कि उन्होंने महिलाओं, अल्पसंख्यकों, पिछड़ी जातियों सहित उन सभी मानवीय मूल्यों के लिए कार्य किया जिसने एक मजबूत भारत की नींव रखी। डॉ अंबेडकर ने महिलाओं के हक के लिए उन्हें समान मतदान सहित मातृत्व अवकाश रोजगार तथा वेतन के लिए कानून में प्रावधान किया तथा हिंदू महिलाओं के अधिकार के लिए हिंदू कोड बिल के लिए आजीवन लड़ते रहे। अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए उनके संस्कृति, धर्म, उपासना एवं शिक्षा के लिए उन्होंने बाकायदा अनुच्छेद 25 से 30 कानून में इसकी व्यवस्थित व्याख्या के साथ उनका अधिकार संरक्षित किया जिसका आज वे बचाव नहीं कर पा रहे है।
आज बहुत सी पिछडी जातियां डॉ. अंबेडकर को न ही जानती है न ही मानती हैं कि उनके आरक्षण की व्यवस्था डॉ. अंबेडकर ने अनुच्छेद 15(4) एवं 16(4) बहुत ही पहले सुरक्षित रख दी थी जो बाद में पिछड़ों के आरक्षण का बुनियाद बना। चूंकि डॉ. अंबेडकर ने निसंदेह रूप से दलितों और स्त्रियों के लिए अनेकों ऐसे कार्य किये जो भारत में हमेशा याद रखा जाना चाहिए, हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि हमारे संकीर्ण समाज ने दलितों, पिछड़ों एवं स्त्रियों के आत्मबल को तोड़ने के लिए जिस मनुस्मृति का सहारा लिया था डॉ अंबेडकर ने सबसे पहले उसे ही जलाकर उन्हें आत्मबल प्रदान किया था।
इसलिए दलितों और स्त्रियों का यह सबसे बड़ा दायित्व बनता है कि वह अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए इस क्रांति को बरकरार रखें, और कभी भी इस भ्रम में ना रहे कि वह आज जिस आजादी और कामयाबी में है थोड़ी बहुत इज्जत और थोड़ा बहुत धन उनके पास जो इकट्ठा हो गया है, उन में उनका रत्ती भर भी योगदान है.अगर नहीं भरोसा है तो आज भी लोकसभा और राज्यसभा का चुनाव दलित और भारतीय स्त्रियां खुला चुनाव लड़कर देख सकती हैं। पर यह बेहद शर्मनाक है कि लोग व्यक्तिगत नशे में है जो दलित कामयाब है उसे अपने ही लोग जाहिल नजर आते हैं, जो अशिक्षित मजदूर हैं वह पढ़े लिखो की सुनने को तैयार नहीं क्योंकि वह अपने दैनिक मजदूरी में ही अपना भाग्य तलाश रहा है और उसे नियति मानकर बगावत से बचना चाहता है। मुझे अशिक्षितों, मजदूरों से ज्यादा शिकायत नहीं है मुझे शिकायत है पढ़े लिखे कामयाब दलितों से जो अपने कामयाबी को सिर्फ अपना मानते हैं और विशेषत: उन जातियों से जो कालांतर में अछूत घोषित किए गए थे जिनके समाज के लोग अभी भी उसकी सजा भोग रहे हैं। क्या कभी इन कामयाब और तुक्ष लोगों ने अंबेडकर की पीड़ा संघर्ष और त्याग को समझा है? पिछले 75 वर्ष से हर 5 वर्ष में 131 दलित सांसद चुनते आए हैं, हर पंचवर्षीय चुनाव में विधानसभा के लिए 1065 दलित विधानसभा चुनकर पहुंचते हैं आखिर इन लोगों ने अपने समाज के लिए क्या किया? 75 साल से लगभग हर वर्ष 100 से ज्यादा आईएएस एवं आईपीएस बनते आ रहे हैं आखिर ये अपने समाज के लिए क्या कर रहे हैं? इसके अतिरिक्त अनेक प्रोफेसर, अध्यापक, दरोगा, जज तमाम ऐसे प्रतिष्ठित पदों पर पहुंचने वाले लोग हैं जो सालों से वहां बैठते आ रहे हैं आखिर वह लोग अपने समाज के लिए क्या कर रहे हैं?
कभी आप कल्पना करके देखिए अगर भारत में अंबेडकर का जन्म नहीं हुआ होता तो आप क्या होते? आपके समाज की कैसे दुर्दशा होती? कुछ लोग इसकी जगह यह कह सकते हैं कि फिर भी कोई न कोई जरूर होता। पर आप दुनिया का इतिहास पलट कर देखिए सबसे पहले अमेरिका में लोकतंत्र की नींव पड़ी पर आपको पता होना चाहिए कि वहां संविधान लागू होने के बावजूद काले लोगों को कोई विशेष अधिकार प्राप्त नहीं था। वहां की स्त्रियों को आरंभ में मतदान का अधिकार नहीं था। रूस हमेशा से तानाशाही देश रहा है चीन के लोकतंत्रका मैं वंचितों शोषितों के लिए विशेष अधिकार आज भी नही है। अरब देशों का लोकतंत्र तो आप जानते ही हैं। आज आपको जो अधिकार प्राप्त है वह इतना आसान नहीं था। उस समय हमारा देश जातीय संकीर्णता से बजबजा रहा था। आपको लगता है इतना आसान था वह सारा अधिकार जिसका सुख आप लोग भोग रहे हैं और सीना तान सोच रहे हैं कि यह सब आपकी योग्यता से मिला है- बिल्कुल नहीं?
अंबेडकर कोलंबिया जाने से पहले यह समझ चुके थे कि किस तरह उन्हें अपने समाज की लड़ाई लड़नी है और इस लड़ाई में उनकी पत्नी रमाबाई जी ने वह सारा त्याग किया जो एक मां अपने पुत्रों के लिए करती है। सचमुच वह दलित समाज की मां थी जिन्होंने अपने पुत्रों के बलि देकर हमारे हितों की रक्षा की है। जब बाबा साहब विदेश में पढ़ाई कर रहे थे तो अपने बड़े पुत्र की मृत्यु की भी खबर उन्होंने उन्हें नहीं दिया था। बाबा साहब ने अपनी पत्नी की पीड़ा ,पुत्र शोक, समाज का तिरस्कार, लोगों का अपमान सब कुछ सहा और शिक्षा को ही अपनी ताकत बनाएं रखा क्या उन्होंने यह सब अपने लिए किया?
गोलमेज सम्मेलन का इतिहास शायद आप भूल चुके हो पर वहां तक पहुंचना इतना आसान नहीं था। इसके लिए उन्होंने लंबी योजना बनाकर वर्तमान सरकार और विश्व में अपनी एक छवि तैयार की। क्योंकि गोलमेज का भविष्य उन्हें पता था इसलिए वहां पहुंचने के लिए उन्होंने बहुत ही प्रयास किया। यह वह दौर था जब दलितों की परछाई भी समाज स्वीकार नहीं कर रहा था, पर उन्हें इसका जवाब ढूंढना था और इसका जवाब था ढेर सारा ज्ञान। ज्ञान इतिहास का, संस्कृत का, वेद पुराण का अर्थशास्त्र का भूगोल का राजनीति का भाषा विज्ञान और कानून का। उन्होंने सबके विषय में उच्च ज्ञान अर्जित किया ताकि सब का मुंह तोड़ जवाब दे सके। इस तरह गोलमेज सम्मेलन तथा संविधान पीठ में उन्होंने इसका भरपूर प्रयोग किया जिससे की सभी के धरे के धरे ज्ञान और अहंकार को चकनाचूर हो सके। और फिर आपके लिए वह सारे अधिकार बनाए जो मनुष्य होने के लिए, आपको समान अवसर देने के सभी दरवाजे खोलने के लिए जरूरी थे।
उन्होंने अपने जीवन में 50000 से ज्यादा पुस्तक पढ़ी। दर्जनों डिग्रीयां हासिल की जिसे प्राप्त करने के लिए मनुष्य का एक जीवन कम पड़ जाएगा। अपनी बीमारियों से ग्रसित होते हुए भी अपने पुत्रों को बलि देते हुए भी अपनी स्वयं का सुख का त्याग करते हुए भी उन्होंने ऐसा किया आखिर क्यों सिर्फ अपने लिए?
तो अब जब तुम जवानी में पागल होकर पढ़ाई छोड़ते हो तो अंबेडकर को पढ़ लेना ,जब तुम कामयाब होना तो अपने पैसे अपने कामयाबी को सिर्फ अपना मत समझना, जब नेता और मंत्री बनना तो किसी और के आगे सर झुकाने से पहले सोचना कि सर कहां झुकाना है, और अपना बंगला बनाने से पहले आसपास भी यह देख लेना कि तुम्हारे अपने लोगों के पास रहने के लिए घर है या नहीं। फिर भी भूलने की जो आदत तुम्हारी ना जाए तो अपना समय और पैसा उड़ाने से पहले अपने आप को आईने के सामने ले जाना और उस आईने के पीछे अंबेडकर की फोटो लगाए रखना ताकि अपनी शक्ल के साथ अंबेडकर को भी देखना शायद तुम्हारा जमीर तुम्हें काबिल होने के पागलपन से बाहर निकाल सके।





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