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के. आर. नारायणन का 10वें दलित राष्ट्रपति बनने का सफर नहीं था आसान

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2023-11-04 13:52:46

केआर नारायणन का जन्म 27 अक्टूबर 1920 को केरल के एक छोटे से गांव पेरुमथॉनम उझावूर, त्रावणकोर में हुआ था। नारायणन की सर्वोच्च पद तक की उल्लेखनीय यात्रा इसी गांव से शुरू हुई। वे एक भारतीय राजनेता, राजनयिक, शिक्षाविद और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने 1992 से 1997 तक नौवें उपराष्ट्रपति 1997 से 2002 तक भारत के दसवें राष्ट्रपति का पदभार संभाला था। उनका परिवार पारवन जाति से था जिका मूल काम नारियल तोड़ना था। जिसे पारंपरिक रूप से अछूत माना जाता था। नारायण के पिता कोचेरिल रमण जाने-माने आयुवेर्दाचार्य थे। केआर नारायणन समेत उनके 7 बच्चे थे। नारायण की बड़ी बहन गौरी भी होम्योपैथ की जानकार थी। छोटे भाई भास्करन पेशे से टीचर थे। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। इसके बावजूद पिता शिक्षा के महत्व को बखूबी समझते थे। उन्होंने नारायणन का एडमिशन अपने घर से लगभग 8 किमी दूर स्थित एक मिशनरी स्कूल में करवा दिया। स्कूल जाने के लिए यह दूरी वे हर दिन पैदल ही तय करते थे। नारायणन ने 1937 में सेंट मेरी हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की।

यूनिवर्सिटी में टॉप करने वाले पहले दलित स्टूडेंट थे नारायण

वह एक बेहद प्रतिभाशाली छात्र थे। पढ़ाई के प्रति उनकी लगन और श्रद्धा को देखते हुए उन्हें कॉलेज जाने के लिए त्रावणकोर के शाही परिवार ने छात्रवृत्ति दी थी। उन्होंने कोट्टायम के सीएमएस कॉलेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की। नारायणन ने अपनी शैक्षणिक प्रतिभा से अंग्रेजी साहित्य में आॅनर्स की डिग्री हासिल की। इस अकादमिक सफलता ने उन्हें लंदन के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में स्कॉलरशिप-समर्थित अध्ययन का मार्ग प्रशस्त किया। इसके बाद लंदन स्कूल आॅफ इकोनॉमिक्स में आगे की शिक्षा प्राप्त की, जहां उन्होंने राजनीति विज्ञान में विशेषज्ञता हासिल की। लंदन में उन्होंने हेरोल्ड लास्की के अधीन रह कर राजनीति विज्ञान का अध्ययन किया। 1943 में जब फर्स्ट क्लास में उन्होंने मास्टर्स किया तो उस समय ऐसा करने वाले नारायणन पहले दलित छात्र थे। इससे पहले किसी भी दलित छात्र ने यह उपलब्धि हासिल नहीं की थी।

पहली बार करना पड़ा जातिवाद का सामना

नारायण की बड़ी बहन गौरी कहती है कि नारायणन बचपन में जातिगत उत्पीड़न से बच गए थे लेकिन त्रावणकोर यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्हें पहली बार जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा था। नारायणन ने नौकरी के लिए तत्कालीन दीवान सी.पी रामास्वामी अय्यर से मिलने गए थे। अय्यर ने क्रोधित होकर कहा कि क्या एक परवन (दलित जाति) को रेशम का मुंडू पहनना चाहिए। उन्होंने नारायण को सिरे से खारिज कर दिया। इससे नारायणन पूरी तरह से निराश हो गए थे। इसके बाद वह दिल्ली आ गए। उन्होंने दिल्ली आने के बाद 1944 से 1945 तक द हिंदू और टाइम्स आॅफ इंडिया में पत्रकार के रूप में काम किया। केआर नारायणन विदेश जाकर पढ़ाई करना चाहते थे। उस समय स्कॉलरशिप की वैसी व्यवस्था नहीं थी। ऐसे में उन्होंने टाटा ग्रुप के मुखिया जेआरडी टाटा को चिट्ठी लिख कर मदद मांगी। टाटा ने उनकी मदद की। इस तरह से वे लंदन स्कूल आॅफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई कर सके। यहां उन्होंने पॉलिटिकल साइंस की पढ़ाई की। उन्होंने बीएससी (इकोनॉमिक) आॅनर्स की भी डिग्री हासिल की। वो भारतीय पद्धति के आयुवेर्दाचार्य भी रहे।

व्यावसायिक जीवन

भारतीय विदेश सेवा से करियर की शुरूआत 1948 में भारत लौटने पर, नारायणन लास्की से एक परिचय पत्र लेकर जवाहरलाल नेहरू से मिले। पंडित नेहरू ने उन्हें भारतीय विदेश सेवा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। वर्ष 1949 में, नारायणन ने भारतीय विदेश सेवा से अपने करियर की शुरूआत की। जहां शुरूआती दिनों में उन्होंने रंगून, टोक्यो, लंदन, कैनबरा और हनोई में महत्वपूर्ण दूतावासों में सेवा की। उनके कार्य कौशल के कारण उन्हें तुर्की और चीन में भारत के राजदूत के रूप में नियुक्त किया गया। 1980 से लेकर 1984 तक अमेरिका में राजदूत एक राजनयिक के रूप में केआर नारायणन का करियर शानदार रहा। 1955 में नेहरू द्वारा उन्हें देश का सर्वश्रेष्ठ राजनयिक नामित किया गया। उन्होंने थाईलैंड, तुर्की और चीन में भारतीय राजदूत के रूप में कार्य किया। उन्होंने विदेश मंत्रालय में सचिव के रूप में भी काम किया। इसके अलावा, उन्होंने दिल्ली स्कूल आॅफ इकोनॉमिक्स में बतौर प्रोफेसर बच्चों को भी पढ़ाया। वर्ष 1978 में सेवानिवृत्त होने के बाद वे जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में कुलपति बनें। इस दौरान नारायणन 1980 से लेकर 1984 तक अमेरिका में राजदूत भी रहे।

राजनीतिक जीवन

नारायणन का राजनीति में प्रवेश श्रीमती इंदिरा गाँधी के आग्रह से सम्भव हुआ। वह लगातार तीन लोकसभा चुनावों 1984, 1989 एवं 1991 में विजयी होकर संसद पहुँचे। केरल के ओट्टपालम सीट से उन्हें पर्याप्त वोटों के साथ जीत हासिल हुई। कांग्रेसी सांसद बनने के बाद वह राजीव गाँधी सरकार के केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में सम्मिलित किए गए। एक मंत्री के रूप में इन्होंने योजना (1985), विदेश मामले (1985-86) तथा विज्ञान एवं तकनीकी (1986-89) विभागों का कार्यभार सम्भाला। सांसद के रूप में इन्होंने अंतराष्ट्रीय पेटेण्ट कानून को भारत में नियंत्रित किया। 1989-91 में जब कांग्रेस सत्ता से बाहर थी, तब श्री नारायणन विपक्षी सांसद की भूमिका में रहे। 1991 में जब पुन: कांग्रेस सत्ता में लौटी तो इन्हें कैबिनेट में सम्मिलित नहीं किया गया। तब केरल के मुख्यमंत्री के. करुणाकरन जो कि इनके राजनीतिक प्रतिस्पर्धी थे, उन्होंने उन्हें सूचित किया कि केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में सम्मिलित न किए जाने का कारण उनकी कम्युनिस्ट समर्थक नीति है। तब उन्होंने जवाब दिया कि मैंने कम्युनिस्ट उम्मीदवारों (ए. के. बालन और लेनिन राजेन्द्रन) को ही तीनों बार चुनाव में पराजित किया था। अत: मैं कम्युनिस्ट विचारधारा का समर्थक कैसे हो सकता हूँ। नारायणन 21 अगस्त, 1992 को डॉ. शंकर दयाल शर्मा के राष्ट्रपतित्व काल में उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए। इनका नाम प्राथमिक रूप से वी. पी. सिंह ने अनुमोदित किया था। उसके बाद जनता पार्टी संसदीय नेतृत्व द्वारा वाम मोर्चे ने भी इन्हें अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। पी. वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने भी इन्हें उम्मीदवार के रूप में हरी झण्डी दिखा दी। इस प्रकार उपराष्ट्रपति पद हेतु वह सर्वसम्मति से उम्मीदवार बने। वाम मोर्चे के बारे में नारायणन ने स्पष्टीकरण दिया कि वह कभी भी साम्यवादी के कट्टर समर्थक अथवा विरोधी नहीं रहे। वाम मोर्चा उनके वैचारिक अन्तर को समझता था लेकिन इसके बाद भी उसने उपराष्ट्रपति चुनाव में उनका समर्थन किया और बाद में राष्ट्रपति चुनाव में भी। इस प्रकार वाम मोर्चे के समर्थन से नारायणन को लाभ पहुँचा और उनकी राजनीतिक स्थिति को स्वीकार्य किया गया। उनका कार्यकाल भारत की राजनीति में गुजरने वाली विभिन्न अस्थिर परिस्थितियों के कारण बेहद ही उतार चढ़ाव वाला रहा है। इसके बाद वर्ष 1997 में, नारायणन को भारत के दसवें राष्ट्रपति के रूप में चुना गया।

शीर्ष पद इसलिए नहीं मिला कि वह दलित है

उपराष्ट्रपति चुनाव के दौरान की बात है। चुनाव में केआर नारायण के दलित होने को लेकर काफी चर्चा थी। उस दौरान केआर नारायणन ने पत्रकारों से कहा था कि प्लीज मेरी कास्ट बैकग्राउंड पर ज्यादा जोर ना दे। दूसरी तरफ नारायणन के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद उनके भाई भास्करन का कहना था कि मेरे भाई को यह शीर्ष पद इसलिए नहीं मिला कि वह दलित है, बल्कि इसलिए मिला कि वह इस पद के काबिल है। भास्करन ने जोर देकर कहा था कि उनका भाई ईमानदारी, सच्चाई और न्याय का एक मॉडल है। उसमें वह सब कुछ है जो एक भारतीय नेता में होना चाहिए।

विश्व हिंदू परिषद् ने किया था नारायणन का विरोध

1997 में जब केआर नारायणन को कांग्रेस, संयुक्त मोर्चा की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया तो उस समय बीजेपी ने भी नारायणन का समर्थन किया था। हालांकि, उस समय विश्व हिंदू परिषद् ने केआर नारायणन के दलित होने को लेकर सवाल उठाए थे। विश्व हिंदू परिषद् के अध्यक्ष अशोक सिंघल ने आरोप लगाया था कि नारायणन किश्चियन हैं। सिंघल का कहना था कि नारायणन ने जीवन भर दलितों के लिए कोई काम नहीं किया है। सिंघल का कहना था कि ना तो वह डॉ. भीमराव अंबेडकर और ना ही महात्मा गांधी के अनुयायी हैं। उस समय नारायण की उम्मीदवारी का विरोध करने वालों में एससी/एसटी सांसदों का फोरम भी शामिल था। कांग्रेस नेता जी. वेंकटस्वामी फोरम के अध्यक्ष थे। 150 सांसदों वाले फोरम ने इस संबंध में एक प्रस्ताव भी पारित किया था। हालांकि, बाद में फोरम के इस प्रस्ताव पर दो फाड़ हो गये थे। उस समय रामविलास पासवान ने केआर नारायणन का समर्थन किया था।

दाम्पत्य जीवन

8 जून, 1951 को श्री नारायणन ने मा टिंट टिंट से विवाह किया। जब वह रंगून और बर्मा (म्यांमार) में कार्यरत थे, तब उनकी भेंट कुमारी मा टिंट टिंट से हुई थी। यह मित्रता शीघ्र ही प्रेम में बदल गई और दोनों ने विवाह करने का निर्णय कर लिया। तब मा टिंट टिंट वाई. डब्ल्यू. सी. ए. में कार्यरत थीं और नारायणन विद्यार्थी थे। लस्की ने नारायणन से कहा कि वह राजनीतिक आजादी के सम्बन्ध में व्याख्यान दें। तभी मा टिंट टिंट इनके सम्पर्क में आई थीं। इनके विवाह को तब विशिष्ट विधान की आवश्यकता पण्डित नेहरू से आशयित थी, क्योंकि भारतीय कानून के अनुसार नारायणन भारतीय विदेश सेवा में कार्यरत थे और मा टिंट टिंट एक विदेशी महिला थीं। शादी के बाद मा टिंट टिंट का भारतीय नाम उषा रखा गया और वह भारतीय नागरिक भी बन गईं। श्रीमती उषा नारायणन ने भारत में महिलाओं तथा बच्चों के कल्याण के लिए कई कार्य किए। इन्होंने बर्मा की लघु कथाओं का अनुवाद करके प्रकाशित करवाया, जिसका शीर्षक था, थेइन पे मिंट। इन्हें चित्रा और अमृता के रूप में दो पुत्रियों की प्राप्ति हुईं चित्रा भारतीय राजदूत के रूप में स्वीडन और तुर्की में अपनी सेवाएँ दे चुकी हैं।

इंटरनेशनल लेवल पर मिले कई सम्मान

इस बात पर कोई दो राय नहीं है कि केआर नारायणन एक कुशल राष्ट्रपति थे। उन्होंने अपने राष्ट्रपति पद पर रहते हुए दो मौकों पर राज्य सरकारों को बर्खास्त करने के सरकार के फैसले पर प्रश्न उठाया था। एक कुशल और जिम्मेदार राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने राष्ट्रपति भवन की विज्ञप्तियों के माध्यम से राष्ट्र को अपने पद पर अपने कार्यों को समझाने की प्रथा की शुरूआत की। देश के राष्ट्रपति पद को संवैधानिक मानदंडों का सावधानी पूर्वक पालन करने और कार्यालय की गरिमा और स्वतंत्रता को बनाए रखने के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता के लिए उन्हें आज भी सम्मान से याद किया जाता है। केआर नारायणन ने भारतीय राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर विभिन्न कार्यों का लेखन और सह-लेखन किया। नारायणन ने कई किताबें भी लिखी। नारायणन की लिखी किताबों में ‘इंडिया एंड अमेरिका एस्सेस इन अंडरस्टैडिंग’, ‘इमेजेस एंड इनसाइट्स’ और ‘नॉन अलाइमेंट इन कन्टैम्परेरी इंटरनेशनल रिलेशंस’ शामिल है। नारायणन को नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर कई पुरस्कार भी मिले। उन्हें साल 1998 में द अपील आॅफ कॉनसाइंस फाउंडेशन, न्यूयार्क की तरफ से ‘वर्ल्ड स्टेट्समैन अवार्ड’ दिया गया। अमेरिका के टोलेडो यूनिवर्सिटी ने नारायण को डॉक्टरेट की उपाधि दी। वहीं, आॅस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ने नारायणन को ‘डॉक्टर आॅफ लॉस’ का सम्मान दिया। तुर्की के सेन कार्लोस यूनिवर्सिटी की तरफ से नारायणन को पॉलिटिकल साइंस में डॉक्टरेट की उपाधि भी मिली।

विवादों में रही जन्म तिथि

पूर्व राष्ट्रपति के आर नारायणन की वास्तविक जन्म तिथि विवादों के घेरे में रही। नारायणन का जन्म 04 फरवरी 1921 को हुआ था, लेकिन उनके चाचा को उनकी वास्तविक जन्मतिथि नहीं पता थी और उन्होंने स्कूल रिकॉर्ड में 27 अक्टूबर, 1920 लिखवा दिया था। हालांकि, इसके बाद में नारायणन ने इसे आधिकारिक ही रहने दिया।

निधन

श्री के. आर. नारायणन का निधन 9 नवम्बर, 2005 को आर्मी रिसर्च एण्ड रैफरल हॉस्पिटल, नई दिल्ली में हुआ। इन्हें न्यूमोनिया की शिकायत थी। फिर गुर्दों के काम न करने के कारण इनकी मृत्यु हो गई। 10 नवम्बर, 2005 को पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ सूर्यास्त के समय उनका अन्तिम संस्कार उनके भतीजे डॉ. पी. वी. रामचन्द्रन ने यमुना नदी के किनारे एकता स्थल पर किया। यह स्थान शान्ति वन के निकट है, जहाँ इनके मार्गदर्शक पण्डित नेहरू की स्मृतियाँ जीवित हैं। उनकी पुत्री चित्रा (तुर्की में भारतीय राजदूत), पत्नी उषा, दूसरी पुत्री अमृता तथा परिवार के अन्य सदस्यों को देश-विदेश से कई संवेदना संदेश प्राप्त हुए। पुत्री चित्रा ने कहा कि उनके पिता को राष्ट्र प्रेम, विशिष्ट नैतिक मनोबल तथा साहस के लिए सदैव याद किया जाएगा। केरल की एक साधारण कंपनी से लेकर राष्ट्रपति भवन तक का उनका जीवन (सफर) भव्यतापूर्ण यात्रा, भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के सामाजिक और लोकतांत्रिक सार को दर्शाती है। उनका जीवन और योगदान भारत और दुनिया भर में गुमनाम लोगों के लिए प्रेरणा का एक प्रतिष्ठित स्रोत है।

(देश के पहले दलित राष्ट्रपति के आर नारायणन जी को कोटि-कोटि नमन!)

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

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