2025-11-01 15:13:34
गुरु नानक देव जी का जन्म सन 15 अप्रैल 1469 को गांव तलवंडी, जिला शेखुपुरा, पंजाब में हुआ था। प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा का दिन गुरु नानक दिवस के रुप में मनाया जाता है। गुरु नानक जी अपने कई महान कार्यों के लिए जाने जाते हैं। गुरु नानक जी को विश्व भर में सांप्रायिक एकता, सच्चाई, शांति, सद्भाव का ज्ञान को बांटने के लिये याद किया जाता है। साथ ही सिख पंथ की नींव को रखने का क्षेय भी गुरु नानक जी को दिया जाता है।
गुरु नानक जी का जीवन हमेशा महान कार्यों के लिए जाना जाता है और आज भी लोग उनकी दी गई सीख पर चलने की कोशिश करते हैं। गुरु नानक जी के पिता का नाम बाबा कालूचंद बेदी और माता का नाम त्रिपती था। इनके माता-पिता जी ने ही इनका नाम नानक रखा था। नानक जी के पिता गांव में स्थानीय राजस्व प्रशासन के अधिकारी थे। नानक बचपन से ही बुद्धिमान थे। बचपन में ही नानक ने कई भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। छोटे से ही नानक को फारसी और अरबी भाषा का बहुत अच्छा ज्ञान था। साल 1485 में नानक ने दौलत खान लोधी के स्टोर में अधिकारी के रुप में नियुक्ति ली।
गुरु नानक जी अपने महान उद्देश्य के ज्ञान के कारण भी जाने जाते है। क्या आपको यह पता है कि पूरी दुनिया को अपने उद्देश्य के बारे में बताने के लिए गुरु नानक जी ने अपना घर छोड़ दिया था। घर छोड़कर गुरु नानक जी अपने सिद्धांत और नियमों का प्रचार करने के लिए निकल गए थे। और एक सन्यासी का रुप धारण कर लिया था। अपने उद्देश्य से गुरु नानक जी ने कमजोर लोगों की मदद के लिए खूब प्रचार किया। साथ ही गुरु नानक जी ने भेद, मूर्ति पूजा और धार्मिक विश्वासों के खिलाफ अपने प्रचार को आगे बढ़ाया। उन्होंने अपने विचारों को फैलाने के लिए कई हिंदू और मुसलिम धर्म के स्थानों की यात्रा की।
गुरु नानक जी की जीवन यात्रा 25 साल तक चली। इन 25 सालों में गुरु नानक जी ने अपने उद्देश्य का बढ़ चढ़कर प्रचार किया और आखिरी में श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी यात्रा खत्म कर दी। नानक जी करतारपुर नाम के गांव जो पंजाब में स्थित है, वहां पर रहने लगे। बाद में इसी जगह गुरु नानक जी ने अपनी आखिरी सांस ली। गुरु नानक जी की मृतयु के 12 साल बाद भाई गुरुदास का जन्म हुआ जो अपने बचपन से ही सिख मिशन से जुड़ गए थे। इन्होंने सिख समुदाय के लिए काफी कुछ किया जैसे कि जगह-जगह सिख समुदाय बनाए और धर्मशालाएं भी खोली।
गुरु नानक का बचपन
वह बचपन से ही गंभीर प्रवृत्ति के थे। बाल्यकाल में जब उनके अन्य साथी खेल कूद में व्यस्त होते थे तो वह अपने नेत्र बंद कर चिंतन मनन में खो जाते थे। यह देख उनके पिता कालू एवं माता तृप्ती चिंतित रहते थे। उनके पिता ने पंडित हरदयाल के पास उन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा लेकिन पंडितजी बालक नानक के प्रश्नों पर निरुत्तर हो जाते थे और उनके ज्ञान को देखकर समझ गए कि नानक को स्वयं ईश्वर ने पढ़ाकर संसार में भेजा है। नानक को मौलवी कुतुबुद्दीन के पास पढ़ने के लिए भेजा गया लेकिन वह भी नानक के प्रश्नों से निरुत्तर हो गए। नानक जी ने घर बार छोड़ दिया और दूर-दूर के देशों में भ्रमण किया जिससे उपासना का सामान्य स्वरूप स्थिर करने में उन्हें बड़ी सहायता मिली। अंत में कबीरदास की ‘निर्गुण उपासना’ का प्रचार उन्होंने पंजाब में आरंभ किया और वे सिख संप्रदाय के संस्थापक हुए।
गुरु नानक जी का परिवार
गुरु नानक जी का विवाह सन 1487 में बटाला निवासी कन्या सुलक्खनी से हुआ। शादी के बाद उनके दो पुत्र हुए। पहला पुत्र 1491 में हुआ और दूसरा पुत्र 1496 में हुआ। उनके नाम श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द था। गुरु नानक के पिता ने उन्हें कृषि, व्यापार आदि में लगाना चाहा किन्तु यह सारे प्रयास नाकाम साबित हुए। उनके पिता ने उन्हें घोड़ों का व्यापार करने के लिए जो राशि दी, नानक जी ने उसे साधु सेवा में लगा दिया। कुछ समय बाद नानक जी अपने बहनोई के पास सुल्तानपुर चले गये। वहां वे सुल्तानपुर के गवर्नर दौलत खां के यहां मादी रख लिये गये। नानक जी अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ करते थे और जो भी आय होती थी उसका ज्यादातर हिस्सा साधुओं और गरीबों को दे देते थे।
परमात्मा ने पिलाया अमृत
सिख ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि गुरु नानक नित्य बेई नदी में स्नान करने जाया करते थे। एक दिन वे स्नान करने के पश्चात वन में अन्तर्ध्यान हो गये। उस समय उन्हें परमात्मा का साक्षात्कार हुआ। परमात्मा ने उन्हें अमृत पिलाया और कहा- मैं सदैव तुम्हारे साथ हूं, जो तुम्हारे सम्पर्क में आयेंगे वे भी आनन्दित होंगे। जाओ दान दो, उपासना करो, स्वयं नाम लो और दूसरों से भी नाम स्मरण कराओ। इस घटना के पश्चात वे अपने परिवार का भार अपने श्वसुर को सौंपकर विचरण करने निकल पड़े और धर्म का प्रचार करने लगे। उन्हें देश के विभिन्न हिस्सों के साथ ही विदेशों की भी यात्राएं कीं और जन सेवा का उपदेश दिया। बाद में वे करतारपुर में बस गये और 1521 ई. से 1539 ई. तक वहीं रहे।
गुरु के लंगर की शुरूआत
गुरु नानक देवजी ने जात-पांत को समाप्त करने और सभी को समान दृष्टि से देखने की दिशा में कदम उठाते हुए लंगर की प्रथा शुरू की थी। लंगर में सब छोटे-बड़े, अमीर-गरीब एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते हैं। आज भी गुरुद्वारों में उसी लंगर की व्यवस्था चल रही है, जहां हर समय हर किसी को भोजन उपलब्ध होता है। इस में सेवा और भक्ति का भाव मुख्य होता है। नानक देवजी का जन्मदिन गुरु पूर्व के रूप में मनाया जाता है। तीन दिन पहले से ही प्रभात फेरियां निकाली जाती हैं। जगह-जगह भक्त लोग पानी और शरबत आदि की व्यवस्था करते हैं। गुरु नानक जी की मृत्यु 22 सितंबर, 1539 को करतारपुर, मुगल साम्राज्य, पाकिस्तान में हुई थी। गुरु नानक जी का निधन सन 1539 ई. में हुआ। इन्होंने गुरुगद्दी का भार गुरु अंगददेव (बाबा लहना) को सौंप दिया और स्वयं करतारपुर में ज्योति में लीन हो गए।
गुरु नानक जी के उपदेश
गुरु नानक जी ने अपने अनुयायियों को दस उपदेश दिए जो कि सदैव प्रासंगिक बने रहेंगे। गुरु नानक जी की शिक्षा का मूल निचोड़ यही है कि परमात्मा एक, अनन्त, सर्वशक्तिमान और सत्य है। वह सर्वत्र व्याप्त है। मूर्ति-पूजा आदि निरर्थक है। नाम-स्मरण सर्वोपरि तत्त्व है और नाम गुरु के द्वारा ही प्राप्त होता है। गुरु नानक की वाणी भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से ओत-प्रोत है।
उन्होंने अपने अनुयायियों को जीवन की दस शिक्षाएं दीं।
1. ईश्वर एक है।
2. सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो।
3. ईश्वर सब जगह और प्राणी मात्र में मौजूद है।
4. ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता।
5. ईमानदारी से और मेहनत कर के उदरपूर्ति करनी चाहिए।
6. बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं।
7. सदैव प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा मांगनी चाहिए।
8. मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।
9. सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं।
10. भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।
गुरु नानक देव ने सिख समाज को जो शिक्षायें दीं, सिख समाज उनपर अमल कर रहा है। इसलिए सिख समाज अन्य समाजों की अपेक्षा बहुत सुखी और समृद्ध है। गुरु जी ने उन्हें दान करने का उपदेश दिया जिसके तहत सिख समाज खूब दान देता है। इस दान से समाज अनेक बड़े-बड़े शिक्षण संस्थान तथा अस्पताल आदि संस्थाओं का निर्माण कर रहा है। प्राकृतिक आपदा तथा अन्य अवसरों पर सिख समाज जरुरत मंदों की विश्व भर में, बहुत ही विषम परिस्थितियों में भी, मानव सेवा कर रहा है जिसकी पूरे विश्व में पहचान बन चुकी है। यह सिख समाज के लिए गौरव की बात है।





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