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धार्मिक आतंकवाद मानवता के लिए खतरा

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2025-04-25 17:42:53

मानवता दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धर्म है। तथागत बुद्ध ने आज से 2500 वर्ष पूर्व अपने अनुयायियों को उपदेश देकर बताया था कि दुनिया में कोई भी घटना बिना किसी कारण के नहीं घटती है और जब किसी घटना का कारण है तो उसका निवारण भी अवश्य होगा। तथागत बुद्ध ने हजारों-हजारों मील पैदल घूमकर मानवता और शांति का संदेश दिया था। उनके संदेश में विशेष बात यह थी कि ‘बैर से बैर नहीं घटता, बल्कि बैर से बैर बढ़ता है’। इसलिए उन्होंने अपने सभी अनुयायियों को संदेश दिया कि सभी आपस में शांति और सौहार्द बनाकर रखें। तथागत बुद्ध के ये उपदेश तार्किक और वैज्ञानिक भी हैं। ये मानवता के सभी तर्कों पर खरे उतरते हैं। हमारे देश में साधारण से साधारण व्यक्ति भी यह बात जानता है कि ‘हम जैसा बोएँगे वैसा ही काटेंगे’। शांति और सौहार्द से संबंधित अग्रणीय महापुरुषों के बहुत सारे बयान है जिन्हें हम यहाँ उद्धरत नहीं कर रहे हैं। हम अपने इस अखबार के माध्यम से जनता को यथासंभव जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं और हमारा मकसद बहुत ही सीमित है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जनता जितनी जागरूक होगी प्रजातंत्र उतना ही मजबूत होगा। इसके उलट आज सत्ता में बैठी सरकार देश में अंधभक्त पैदा करने में लगी है और अंधभक्त जब भी पैदा होंगे, तब जनता में शिक्षा और ज्ञान का स्तर कम होगा। इसलिए आज सरकारों का जोर जनता को जागरूक करने में नहीं, बल्कि सत्ताबल से अंधभक्त बनाने पर अधिक है।

आतंकवादी घटनाएँ कई प्रकार की हो सकती है और उनके पीछे का उद्देश्य भी कई प्रकार का हो सकता है। जैसे सांस्कृतिक आतंकवाद; धार्मिक आतंकवाद; क्षेत्रीय वर्चस्व का आतंकवाद; भाषाई आतंकवाद; खान-पान, पहनावे और मंगलसूत्र का आतंकवाद आदि। ये सभी आतंकवाद मानवता विरोधी कार्यों में लिप्त रहते हैं और जबतक मनुष्य इन सभी आतंकवादी गतिविधियों से अपना पीछा नहीं छुड़ाएगा, तब तक देश में आतंकवाद भी जीवित रहेगा। आतंकवाद कोई परजीवी वायरस नहीं है। यह प्रत्येक मनुष्य की मानसिकता में बैठे नफरत के वे किटाणु है जो समय और परिस्थिति के अनुकूल सक्रिय होकर कार्य करते हैं। श्रीनगर की हाल ही कि आतंकी घटना ने मानवता को झंकझोर दिया है और पूरा देश इस मानवता विरोधी कृत्यों से गमगीन होकर शोक में डूबा हुआ है। यहाँ पर यह बात भी महत्वपूर्ण है कि आतंकवादियों ने नाम और धर्म पूछकर गोलियाँ मारी। कलमा न पढ़ने पर गोलियाँ मारी। देश का मीडिया हिन्दू मुस्लिम का अनर्गल प्रचार करने में लगा है इसके पीछे की मानसिकता के कारण क्या रहे हैं? वह तो हमें नहीं पता। मीडिया में छपे व दिखाये गए हालात जागरूक और तार्किक लोगों के मन में कई प्रकार के प्रश्न अवश्य खड़े करते हैं। जैसे नाम पूछकर और कलमा न पढ़ने पर गोली मारना। यह भी देखा गया कि पुरुषों को ही गोली मारी गई और महिलाओं को छोड़ दिया गया। किसी भी व्यक्ति के मन में यह तार्किक सवाल पैदा होना स्वाभाविक है कि अगर आतंकियों ने ‘हिन्दू’ नाम से गोली मारी तो उसके साथ जो महिला थी वह भी तो हिन्दू ही होगी, तो फिर उसे गोली क्यों नहीं मारी? मरने वालों में अधिकतर सैलानी ही थे, मीडिया के माध्यम से यह भी मालूम हुआ कि वहाँ के स्थानीय आदिल हुसैन नाम के व्यक्ति ने आतंकियों का खुलकर विरोध किया और वे उनसे भिड़ गए। इससे स्पष्ट होता है कि पहलगाम कश्मीर के स्थानीय लोग आतंकियों के साथ नहीं थे और न ही उन्हें उनका कोई समर्थन था। लगता है षड्यंत्रकारी ताकतों ने ही इस खौंफनाक घटना को अंजाम दिया, जो अपने आप में बहुत ही संवेदनशील और हृदयविदारक घटना है।

सांस्कृतिक आतंकवाद: सांस्कृतिक एक ऐसा शब्द है जो प्रत्येक मनुष्य की कार्यशैली से जुड़ा हुआ है और उसे वह प्रभावित भी करता है। देश में सांस्कृतिक सभाओं और आयोजनों का हर रोज बोलबाला दिखाई देता है। मगर भारत की मानवतावादी संस्कृति दिनों-दिन कमजोर और नष्ट होती जा रही है। जिसके कारण देश में आतंकवादी गतिविधियाँ बढ़ रही है। वर्तमान समय में भाजपा-संघी सरकार सत्ता में है जिसमें संस्कृति पर गर्व करने का उन्माद समाहित है। इसी तरह का भाजपा का सांस्कृतिक संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’(आरएसएस) है जो जमीन के ऊपर दिखाई नहीं देता वह जमीनी सतह के नीचे रहकर ही मानवता विरोधी षड्यंत्रों को अंजाम देता है। यह संगठन भारत में किसी भी कानून के तहत रजिस्टर्ड नहीं है और देश में इसकी लाखों शाखायें हर रोज नियमवत तरीके से विभिन्न भागों में लगाई जाती है। जिसके माध्यम से देश के भोले-भाले लोगों की मानसिकता को दूषित किया जाता है। एक-दूसरे के प्रति धार्मिक उन्माद और जातिवादी नफरत का भाव भरकर लोगों को अपने दुश्मनों से लड़ने-मरने के लिए तैयार भी किया जाता है। देश के लिए अच्छा यही है कि ऐसे सभी सांस्कृतिक संस्थाएँ जो रजिस्टर्ड हो या अन-रजिस्टर्ड उन्हें तुरंत प्रभाव से बंद किया जाये।

धार्मिक आतंकवाद: मौ. इकबाल का शेर है कि ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना...........।’ मौ. इकबाल का यह शेर उनकी मानसिकता के अनुरूप तब रहा होगा, मगर वर्तमान समय में इकबाल साहब का यह शेर एकदम उलट दिखता है। आज दुनिया में अकेला मजहब ही है जो हर ‘आतंकवादी गतिविधि’ की मूल जड़ है। धर्म की आड़ में ही हर रोज आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया जाता है। अगर पहलगाम की घटना में यह सत्य है कि नाम पूछकर ही गोली चलाई गई और इस्लामिक रीति के अनुसार नाम न पाकर गोली मार दी गई तो इकबाल साहब का यह शेर बेमानी है। चूंकि धर्म जानकर ही मीडिया में दिये गए तथ्यों के आधार पर खौंफनाक आतंकी घटना को जन्म दिया गया लगता है। ऐसी खौंफनाक आतंकी घटनाओं को वैश्विक स्तर पर शांत करने के लिए भगवान बुद्ध का उपदेश ‘बैर से बैर नहीं घटता, बल्कि बैर से बैर बढ़ता है’ इसलिए ऐसी घटनाओं को रोकने का सबसे उत्तम और सरल उपाय यही है कि समाज में किसी भी प्रकार के आतंकवाद को जन्म मत लेने दो।

क्षेत्रीय आतंकवाद: भारत एक विविधतापूर्ण देश है जहाँ पर सभी प्रकार की विविधताएँ मौजूद है। हर रोज देखा जा रहा कि महाराष्ट्र और कर्नाटक में भौगोलिक क्षेत्र को लेकर विवाद उभरता रहता है। इस प्रकार के विवादों को आपस में मिल-बैठकर प्रदेशों के मुखियाओं को स्वयं ही समाप्त कर लेना चाहिए। चूंकि ये सब जनहित से जुड़े मुद्दे नहीं है और इस तरह के मुद्दे जनता में परस्पर सौहार्द को खत्म करके अप्रिय घटनाओं को जन्म देते हैं। जम्मू कश्मीर का मुद्दा भी इसी प्रकार की क्षेत्रीय अशांति का कारण है, जिसे आपस में मिल-बैठकर सुलझाना ही दोनों तरफ की जनता के लिए सार्थक हो सकेगा।

भाषाई आतंकवाद: भारत एक विशाल देश है, यहाँ सैंकड़ों भाषाएँ और हजारों बोलियां है। इतनी विविधता होने के कारण यहाँ पर किसी एक या दो भाषाओं का वर्चस्व स्थापित नहीं किया जा सकता। सभी को अपनी-अपनी भाषा और बोली पर गर्व होता है। सभी नागरिक यह कोशिश करेंगे कि मेरी भाषा और मेरी बोली की सर्वमान्य होनी चाहिए। यह धारणा सर्वमान्य नहीं हो सकती और न इसके द्वारा दोनों तरफ शांति हो सकती है। हाल ही का उदाहरण तमिलनाडु और बंगाल का है जो अपनी-अपनी भाषाओं को लेकर मुखर है और इन सभी प्रदेशों की जनता भारत सरकार द्वारा त्रिभाषा फोमूर्ले को अपने प्रदेशों की जनता पर थोंपने का आरोप लगा रही है। संविधान के अनुसार शिक्षा राज्य की सूची के अधीन है तो केंद्र सरकार द्वारा ऐसे मुद्दे राज्य को ही सौंप देना चाहिए। संविधान निर्माताओं ने सोच-समझकर ही शिक्षा को राज्य सूची के अधीन रखा ताकि वहाँ पर भाषा आदि के मुद्दे पर कोई विवाद न हो और इस आधार पर कोई सामाजिक विघटन न बने। भाषाई मुद्दे को लेकर कई राज्यों के मुख्यमंत्री केंद्र सरकार पर हिन्दी थोंपने का आरोप लगा रहे हैं, केंद्र सरकार को ऐसे सभी विवादित मुद्दों से बचना चाहिए चूंकि देश की एकता और अखंडता भाषा से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।

खान-पान व पहनावे से संबंधित आतंकवाद: आज देश में जब से संघी मानसिकता की सरकारें अस्तित्व में है तभी से सामाजिक व्यवस्था में विवाद उत्पन्न हो रहे हैं। आज एक समाज दूसरे समाज को नफरत की निगाह से देख रहा है। यह चलन पहले कभी देखने को नहीं मिलता था। अब तो सामाजिक ताना-बाना इस कदर तक खराब हो चुका है कि देश का प्रधानमंत्री मोदी व उसके संघी मानसिकता के दोस्त योगी जनता में खुलेआम प्रचार के माध्यम से ऐलान करते पाये जाते हैं कि ‘कपड़ो से पहचानो, और इसी तरह के अन्य बातें करके जनता में हिन्दू-मुसलमान का जहर फैला रहे हैं। 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में 40 सैनिकों की हत्या हुई थी जिसको तत्कालीन मोदी संघी सरकार ने हिन्दू-मुस्लिम जिहाद से जोड़कर ऐसा दिखाने की कोशिश की थी कि पाकिस्तान की तरफ से मुस्लिमों ने हिन्दू सैनिकों की टुकड़ी पर हमला किया है। इस घटना के द्वारा देश की जनता में पुरजोर तरीके से देशभक्ति का बीजारोपन किया गया था। शायद यह घटना एक सोची समझी रणनीति के तहत कराई गई थी। चूंकि 2019 में लोकसभा के चुनाव भी मई में ही थे और उसमें मोदी सरकार को हारने का डर था। इस घटना ने देशवासियों के अंदर राष्ट्रभक्ति का जज्बा जाग्रत किया और मोदी संघी सरकार की अच्छे मतों से जीत हुई। इस तरह का षड्यंत्र करना देशवासियों के साथ एक घृणात्मक कार्य है। परंतु फिर भी संघियों की मानसिकता के अनुसार कुछ भी भयानक से भयानक षड्यंत्र करके चुनाव में जीत हासिल करना अधिक महत्वपूर्ण है। इसी संदर्भ में हाल ही में पहलगाम कश्मीर में हुई यह घिनौनी घटना कहीं वैसा ही तो कुछ षड्यंत्र नहीं है? इसकी गंभीर रूप से जाँच होनी चाहिए और जाँच रिपोर्ट को जनता में उजागर करना चाहिए। पुलवामा की जाँच रिपोर्ट अभी तक जनता के सामने नहीं आई है जो घटना उस समय संदिग्घ लग रही थी। देश की जनता आज की सरकारों पर भरोसा करने में हिचकिचाती है और वह सारे प्रकरण की सत्यता जानना चाहती है। हम सभी भारतीयों से निवेदन करते हैं कि वे इस दुख की घड़ी में सयम बरते और सही समय आने पर उचित जवाब देने से पीछे न हटे और न ब्रह्मजाल में फँसे।

वर्तमान समय में अमेरिका का उपराष्ट्रपति भारत में आया हुआ है, और वक्फ कानून को लेकर देश में मुद्दा गरम है। देश के उच्चतम न्यायालय ने वक्फ कानून को लेकर जो फैसला अभी तक सुनाया है उससे मोदी संघी सरकार और उसके मानसिक गुलामों को मिर्ची लगी हुई है। देश का प्रमुख मीडिया कुछ भी बोलने से परहेज कर रहा है। भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ बार-बार अपनी असंवैधानिक टिप्पणियों से देश की न्याय व्यवस्था को मनुवादी मानसिकता के तहत गलत साबित करने की कोशिश कर रहे हैं और वे अपनी औच्छी टिप्पणियों से बाज नहीं आ रहे हैं। मोदी-संघी शासन में ऐसे हजारों निशिकांत दुबे और जगदीप धनगड है जो देश के लोकतंत्र को कमजोर और शर्मसार कर रहे हैं। मनुवादियों के ऐसे अंधभक्तों से देश के लोकतंत्र को खतरा है और देश के बुद्धिजीवियों को इन सब बातों से सावधान रहने की आवश्यकता है। देश का उच्चतम न्यायालय इस समय सही रास्ते पर है। हम मोदी-संघियों के अंधभक्तों को बताना चाहते हैं कि भारत की संवैधानिक व्यवस्था में संविधान ही सर्वोच्चय है और उसकी व्याख्या करना देश के उच्चतम न्यायालय का कर्तव्य है। देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनगड और निशिकांत दुबे जैसे संसद सदस्य देश की जनता को मूर्ख न समझें, लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि होती है लेकिन कानून संबंधित मामलों की व्याख्या करने में उच्चतम न्यायालय ही सर्वोपरि होता है। इसलिए देशवासियों से अपील है कि वह जगदीप धनकड़ और निशिकांत दुबे जैसे मानसिक गुलामों के छलावे में न फँसे, अपनी तर्कबुद्धि से काम लें और ऐसी आतंकवादी वीभत्स घटनाओं पर भी तार्किकता के साथ सोच-समझकर आगे बढ़े।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 16:38:05