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नकली अम्बेडकरवादी समाज की जड़ों में डाल रहे मठ्ठा

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2025-04-12 18:11:02

बहुजन समाज में आज स्वार्थपूर्ण चरित्र देखने को मिल रहा है। आज बहुजन समाज के नागरिक (एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक) अपने महापुरुषों की विचारधारा को सिर्फ नाम व दिखावे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। अपने महापुरुषों के विचार में विश्वास कम और अपने को चमकाने में ज्यादा लिप्त है। समाज में पढ़ाई-लिखाई का स्तर कमजोर हो रहा है। समाज के बच्चों की रीडिंग हेबिट्स घट रही है, हर व्यक्ति आज अपने आपको सभी प्रकार से परिपूर्ण समझ रहा है। सभी के परिवारों में आपसी तालमेल घट रहा है। सभी अलग-अलग रहकर स्वयंभू शक्तिमान बने हुए हैं। परिवार के बच्चे दादा-दादी, नाना-नानी व अन्य वरिष्ठ सगे-संबंधियों के साथ घुल-मिल नहीं रहे हैं, जिसके कारण वे अपने बुजुर्गों से मुफ्त में मिलने वाले सामाजिक ज्ञान से निरंतरता के साथ वंचित हो रहे हैं। पहले बच्चे अपने इन वरिष्ठ सगे-संबंधियों के माध्यम से समाज का पीढ़ियों का ज्ञान मुफ्त में पाकर सक्षम बनते थे। वे समाज की हर चुनौती का मुकाबला करने में सक्षम व दक्ष बन जाते थे। मगर अब ऐसा नहीं हो रहा है। सभी अलगाववाद में जी रहे है।

वर्तमान समय में बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के संघर्ष के बाद जो लोग शिक्षित हुए, नौकरियां पाई, वे सबके सब लोग नौकरी, काम-धंधों में और अपने बच्चों के लिए मकान-दुकान व उन्हें शिक्षित करने तक ही सीमित हो गए। आज समाज में ऐसे हालात नजर आ रहे हैं कि पहली-दूसरी पीढ़ी के तथाकथित अम्बेडकरवादियों ने अपने आपको अपने परिवार तक ही सीमित कर लिया है। उन्होंने समाज के लिए कोई सकारात्मक न योगदान दिया और न काम किया। अधिकतर ये लोग रिटायर होने के बाद इकट्ठे होकर मोहल्ले, बस्तियों, पार्कों, गलियों में ताश खेलकर समय व्यतीत कर रहे हैं और शाम होने पर आपस में मिलकर दारू इत्यादि की पार्टियों मे व्यस्त हैं। इनके व्यवहार को देखकर ऐसा लगता है कि अब हमारा काम खत्म हो गया है, हमने अपने बेटे-बेटियों की शादियाँ कर दी हैं, अच्छे दुकान-मकान बना लिए हैं और अब उनको यह भी याद नहीं आ रहा है कि यह सबकुछ बदलाव किन महापुरुषों के संघर्ष और विचारों से प्राप्त हुआ है। कुछेक बेशर्म लोग तो यह कहने में भी शर्म महसूस नहीं करते कि ‘हमने यह सब अपनी मेहनत से ही प्राप्त किया है और इसमें अन्य किसी का भी कोई योगदान नहीं है।’ ऐसे एहसान फरामोश लोगों से पूछना चाहिए कि आपका और आपके पूर्वजों का संघर्ष तो बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के संघर्ष से भी पहले से मौजूद था फिर आपकी संपन्नता और समृद्धता आज जैसी क्यों नहीं थी? लेकिन हमें यह भी नजर आता है कि समाज में इतनी मोटी और चिकनी चमड़ी के लोग पैदा हो गये हैं कि उनपर किसी भी बात का न कोई असर होता है और न वे समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझते हैं।

समाज में बढ़ रहा मनुवादी प्रभाव: आमतौर पर देखा और महसूस किया जा रहा है कि समाज के लोगों के ऊपर मनुवादी और हिंदुत्ववादी वैचारिकी का रंग दिन-प्रतिदिन अधिक गहरा होता जा रहा है। पहले हम समाज में हिंदुत्व का इतना गहरा रंग नहीं देख रहे थे, जितना आज देख रहे हैं। आज समाज का हर व्यक्ति महिला हो या पुरुष एक दूसरे से मिलने पर ‘राम-राम’ या ‘जय श्रीराम’ करते हैं। महिलाओं में यह चलन अधिक तेजी से बढ़ा है। आज अपने आपको जागरूक कहने व समझने वाली समाज की महिलाएँ इस हिंदुत्ववादी वैचारिकी की अधिक शिकार है। ये महिलाएँ ही हिंदुत्ववादी वैचारिकी को समाज में अधिक मजबूती से स्थापित कर रही हैं। पहले दलित समाज के व्यक्ति हिंदुत्ववादी वैचारिकी में इतने लिप्त नहीं थे जितने आज नजर आ रहे हैं। पहले दलित समाज के व्यक्ति आर्थिक रूप से कमजोर जरूर थे मगर वे पाखंडी कथाओं, सत्संगों, प्रचारों में इस तरह लिप्त नहीं थे। वे अधिकतर अपने महापुरुषों जैसे- संत कबीर, संत रविदास, गुरु नानक, दादू, स्वामी अछूतानंद आदि की शिक्षाओं को सुनकर कुछ हद तक उन्हें अपने आचरण में समाहित करके आगे बढ़ रहे थे। परंतु जब से समाज में बाबा साहेब के संघर्ष के द्वारा शिक्षा का प्रवाह हुआ और उसकी बदौलत नौकरियां मिलने लगी, बड़े-बड़े मकान व दुकान बनाने के इन्हें मौके मिलने लगे, इन्होंने अपनी संपन्नता को देखकर उसे ईश्वरीय शक्ति की कृपा समझ लिया है और आज वे सभी इसी में पक्का विश्वास करने लगे हैं। वे सभी यह भूल चुके हैं कि तुम्हारे पूर्वजों ने हिंदुत्ववादी काल्पनिक अवतरित भगवानों और देवियों की स्तुति तो पहले भी की होगी लेकिन तब आप और आपकी पुरखें आज के सापेक्ष समृद्ध क्यों नहीं हो पाये थे?

सामाजिक संगठनों के संचालकों ने बहुजन आंदोलनों को किया ध्वस्त: आज पूरे देश में बहुजन समाज के संगठनों का जोर-शोर से बखान किया जाता है, कोई इनकी 5 लाख संख्या बताता है तो कोई 10 लाख बताता है। इसका कोई वास्तविक आंकलन नहीं है मगर आज समाज कम से कम उन्हें 5 लाख भी मान ले तो उन्हें अपने समाज को बताना चाहिए कि आपकी संस्था समाज के लिए क्या रही है? आगे आप समाज के लिए क्या योजना बना रहे हैं? शायद किसी भी संगठन के संचालकों के पास इस बात का सटीक जवाब नहीं है। अगर आज समाज बाबा साहेब द्वारा अपने जीवन काल में स्थापित किए गए सामाजिक संगठनों जैसे- समता सैनिक दल (1924), बुद्धिस्ट सोसाइटी आॅफ इंडिया (1955), रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया (1957) का वास्तविक आंकलन करें तो पाते हैं कि ये तीनों संगठन स्वार्थी व लालची किस्म के संचालकों से घिरे हुए हैं, इन संस्थाओं के संचालकों ने संस्था की ताकत का इस्तेमाल करके अपने कुछ गुर्गे भी पैदा कर लिए हैं। इनके ये गुर्गे समाज में जाकर इनकी तारीफों के पुल बाँधते हैं और समाज से जुड़े महापुरुषों की जन्म जयंती व स्मृति दिवस आदि पर समाज से यथासंभव चंदा भी इकट्ठा करते हैं। हमको ज्ञात हुआ है कि कुछेक संचालक कत्तार्ओं के गुर्गे तो अपना घर भी इन संस्थाओं के माध्यम से ही चला रहे हैं। संस्थाओं के शीर्ष पदों पर बैठे संचालकों में न त्याग की भावना है और न उनमें बाबा साहेब के मिशन के लिए समर्पण की भावना है, ये अधिकतर सभी नेता समाज की संख्या बल और धन बल से अपने आपको समाज में चमकाने का काम कर रहे हैं।

दलित आयोगों में बैठे हैं नकली अम्बेडकरवादी: सामाजिक संस्थाओं के संचालक अधिकतर गुलाम मानसिकता के हैं। वे दलितों के लिए बनाए गए सरकारी आयोगों में बैठकर सामाजिक संस्थाओं के संचालकों से मनुवादियों की सरकार के लिए राजनैतिक दलाली कर रहे है और समाज के हित में कोई काम नहीं कर रहे हैं। ताजा उदाहरण सारे समाज के सामने बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का संसद परिसर से प्रतिमा विस्थापन का हैं। जो दलितों के स्वाभिमान से जुड़ा मुद्दा है। यहाँ सवाल बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की प्रतिमा हटाने का नहीं है, बल्कि उनके सम्मान व समाज की अस्मियता का मुद्दा है। जिसकी परवाह वर्तमान की मोदी-सरकार नहीं कर रही है। मोदी-संघी सरकार द्वारा बाबा साहेब का नाम लेना, उनकी प्रतिमाओं पर जाकर माथा टेकना और फूल चढ़ाना एक नाटक मात्र है। दलित समाज के सभी जातीय घटकों को इस संघी मानसिकता को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए। जिसके तहत ही मोदी-संघी सरकार ने बढ़ते अम्बेडकरवाद से मुक्ति पाने के लिए बाबा साहेब की प्रतिमा को संसद भवन के परिसर से चुपचाप षड्यंत्रकारी तरीके से 3-4 जून की रात को विस्थापित कर दिया। जिसकी अम्बेडकरी समाज को कानों-कान तक खबर भी नहीं होनी दी। जिसकी जानकारी मिलने पर अम्बेडकरी समाज ने रोष व्यक्त किया और समाज के कुछेक जागरूक लोगों ने इकट्ठा होकर 26 जून और 9 अगस्त 2024 को प्रतिमा विस्थापन के मुद्दे पर प्रदर्शन व आंदोलन भी किया। परंतु अहंकारी संघी मोदी सरकार टस-से-मस नहीं हुई। वहीं संसद में बैठे समाज के 131 सांसदों ने भी इस मुद्दे पर आगे बढ़कर कोई आवाज नहीं उठाई। अगर इन सांसदों में बाबा साहेब के प्रति सच्ची श्रद्धा होती या फिर थोड़ी भी शर्म हया होती तो वे सामुहिक रूप से एकत्र होकर संसद को चलने नहीं देते। नतीजतन मोदी संघी सरकार को गिरने का खतरा पैदा हो जाता और मजबूरन संघियों को बाबा साहेब की प्रतिमा को वहीं उसी स्थान पर लगानी पड़ती। सामाजिक संस्थाओं के स्वार्थी नेताओं ने मोदी सरकार में बैठे गुलाम मानसिकता के दलित आयोगों के अध्यक्षों के साथ आंदोलन कर रहे अम्बेडकरवादियों की मीटिंग भी करायी लेकिन फिर भी इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला। समाज की विडंबना यह है कि मोदी-संघी सरकार में जो समाज के राजनैतिक दलाल बने हुए हैं जनता उनके बहकावे-छलावे में क्यों फंस रही है? ऐसा परिदृश्य देखकर लगता है कि समाज के सामाजिक संगठनों के संचालक व कर्ता-धतार्ओं में बाबा साहेब के दर्शन के प्रति श्रद्धा कम और मनुवादियों की दलाली करने में ज्यादा है।

नकली अम्बेडकरवादियों से सावधान!: आज समाज में नकली अम्बेडकरवादी अधिक दिखाई पढ़ रहे हैं। वे अपने आपको राजनीति में स्थापित करने के लिए समाज के जन-बल को अपने साथ दिखाकर संघी सरकारों से निजी फायदें के लिए कुछ अदृश्य साँठ-गाँठ कर रहे हैं। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने जीवन प्रर्यंत अपने समाज को आगे बढ़ाने के लिए कार्य किया लेकिन उन्होंने कभी भी अपने समाज की ताकत से अपने आपको राजनीति में चमकाने की कोशिश नहीं की। यहाँ यह भी बताना आवश्यक है कि बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर को हमारे समाज से अपेक्षित सहयोग नहीं मिला था जिससे विमुख होकर उन्होंने कहा था कि ‘अगर हमारा समाज हमारी बात मान ले तो इससे बढ़कर सुधार नहीं है लेकिन वह हमारी बात न मानकर पंडित जी (ब्राह्मण, संघियों) की बात अधिक मानता है और सुनता है’ उनका यह कथन तब भी सही था और आज उनके चले जाने के 68 वर्षों के बाद भी उतना ही सही है। शायद समाज में यह फर्क तो जरूर नजर आ रहा है कि उस समय के पहली और दूसरी पीढ़ी के अम्बेडकरवादी नेताओं में त्याग, निष्ठा और समर्पण की भावना अधिक मजबूत थी और आज की वर्तमान पीढ़ी में बिल्कुल भी नजर नहीं आ रही है।

नकली अम्बेडकरवादियों का इलाज: आज के सामाजिक परिवेश को देखते हुए ऐसा लगता है कि इन नकली अम्बेडकरवादियों का इलाज करने के लिए समाज को दूसरे तरीके से जागरूक करना पड़ेगा। हर मनुष्य सामाजिक प्राणी है और बिना समाज के उसका अस्तित्व नगण्य है इसलिए समाज के जागरूक और समझदार लोगों को इन नकली अम्बेडकरवादियों से सचेत करना पड़ेगा और बताना पड़ेगा कि ये नकली अम्बेडकरवादी समाज के लिए परजीवी हैं। ये समाज की ताकत से पल रहे परजीवी समाज को ही नुकसान पहुँचाने का काम करते हैं। सबको पता है कि आज के सामाजिक परिवेश में ब्राह्मणवाद और अम्बेडकरवाद दो ही वाद है। अम्बेडकरवाद का सबसे बड़ा दुश्मन अगर कोई इस देश में हैं तो वह ब्राह्मणवाद ही है, लेकिन ये नकली अम्बेडकरवादी ब्राह्मणवाद से तालमेल करके उनके राजनैतिक दलाल बन चुके हैं और अपने स्वार्थ के लिए कार्य में जुटकर उनका ही काम कर रहे हैं। हमारा समाज से आग्रह है कि ऐसे नकली अम्बेडकरवादियों को पहचानों, इनका त्याग करो और इन सभी को किसी भी सामाजिक आयोजन में आमंत्रित मत करो। ऐसे नकली अम्बेडकरवादियों को समाज से सावधान करो और ये बताओ कि ये वास्तविकता के आधार पर समाज के लिए आस्तीन के साँप हैं ये अपने ही समाज को डँसने और काम ब्राह्मणवाद के लिए करेंगे।

जय भीम, जय संविधान, जय भारत

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 16:38:05