Saturday, 28th June 2025
Follow us on
Saturday, 28th June 2025
Follow us on

मनुवादियों की आतंरिक संरचना ‘संविधान विरोधी’

News

2025-06-27 17:49:22

भारत में संविधान सत्ता 26 जनवरी 1950 को लागू हुई, तभी से देश यह मानकर आगे बढ़ा कि अब सत्ता संविधान के प्रावधानों के अनुरूप काम करेगी। परंतु संविधान विरोधी संघी/मनुवादी मानसिकता के लोग पहले दिन से ही संविधान के खिलाफ खड़े दिखे। 10 फरवरी, 1950 को संघी दीनदयाल उपाध्याय ने संविधान के विरोध में ऐलान किया कि ‘हम इस संविधान को नहीं मानते, चूंकि यह संविधान हिन्दुत्व की संस्कृति को प्रतिबिम्बित नहीं करता।’ हम देश की जनता को सावधान कर देना चाहते हैं कि संघी मानसिकता के नेता संविधान के विरोध में थे, जब बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर संविधान सभा में संविधान का निर्माण कर रहे थे, तब इन मनुवादी संघियों ने देश भर में बाबा साहेब के विरोध में रैलियाँ की थीं, उनके पुतले जलाये गए थे और देश की भोली-भाली जनता को बाबा साहेब के खिलाफ भड़काया भी था। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने अपने बौद्धिक बल से मनुवादी मानसिकता के सभी धूर्तों का डटकर सामना किया तथा उन्हें तार्किक जवाब भी दिये। किन्तु संघी मानसिकता के धूर्त इतने बेशर्म और चिकने घड़े होते हैं कि उनपर किसी भी तर्कपूर्ण बात का कोई असर नहीं होता। ये मनुवादी बेशर्मी का चोला ओढ़कर समाज की भोली-भाली जनता को पाखंड के खेल में धकेलकर मूर्ख बनाने का काम करते हैं। जनता को शायद यह पता नहीं होता कि मूर्ख और धूर्त में फर्क क्या है?

मूर्ख लोग कभी भी समाज को जान-बूझकर नुकसान नहीं पहुँचाते और न वे समाज के लिए हानिकारक होते हैं, मूर्ख लोग जो भी जाने-अनजाने में करते हैं उसमें उनका कोई षड्यंत्र छिपा नहीं होता है। ये लोग साधारण सोच और साधारण विचार के होते हैं। ये सभी लोग सीधे-सादे और भोले होते हैं। इसके विपरीत धूर्त लोग वे होते हैं जो सबकुछ जानते हैं लेकिन जनता के सामने प्रदर्शन ऐसा करते हैं जैसे कि वे कुछ नहीं जानते। उदाहरण के तौर पर कह सकते हैं कि देश में मनुवादी लोग धूर्त संस्कृति के हैं और बहुजन जनता मूर्ख संस्कृति की हैं। चूंकि बहुजन समाज संख्या बल में अधिक होने पर भी सत्ता में नहीं है और मनुवादी लोग देश में 3.5 प्रतिशत होकर भी सत्ता पर काबिज हैं। ऐसा करने में मनुवादी संस्कृति के लोग इसलिए सफल हंै चूंकि मनुवादी व्यवस्था ने देश की जनसंख्या को 6743 जातियों में विभक्त करके रखा है। सामाजिक विभक्तिकरण में ही छिपा है मनुवादी संस्कृति की सत्ता का खेल। मनुवादी धूर्त जानते हैं कि बहुजन समाज जितने अधिक जातीय टुकड़ों में बंटेगा, मनुवादियों की सत्ता उतनी ही अधिक मजबूती के साथ बनी रहेगी। संघी मानिकता के कर्णधार पिछले 2-3 वर्षों से जनता के बीच जाकर और प्रचारतंत्र के माध्यम से राग अलाप रहे हैं कि बंटोगे तो कटोगे, एक रहोगे तो सेफ रहोगे। इसके बार-बार दोहराव पर अभी तक बहुजन समाज के मूर्खों ने तार्किक जवाब नहीं दिया जो दर्शाता है कि बहुजन समाज के लोग मूर्ख होने के साथ-साथ यह भी नहीं जानते कि संघी मानसिकता के मनुवादी लोग किस संदर्भ में यह बार-बार दोहरा रहे हैं। बहुजन समाज की जनता से हमारी अपील है कि वह मनुवादी आचरण की आंतरिक संरचना को अतीत में जाकर देखें, और उसी आधार पर आंकलन करें कि मनुवादी संघी लोग जनता के सामने जो कहते हैं उसका अर्थ उनके लिए उलटा होता है, जिसे बहुजन समाज की जनता समझने में असमर्थ रहती है।

बहुजन समाज को क्या करना चाहिए? बहुजन समाज जातीय टुकड़ों में बिखरा हुआ है। इन सभी जातीय टुकड़ों में क्रमिक ऊंच-नीच है जो अपने आप में एक को दूूसरे जातीय घटक से दूर धकेलता हैं। इसी कारण बहुजन समाज के जातीय घटकों में एकता नहीं है, जिसका फायदा मनुवादियों को हो रहा है। इस प्रकार के सामाजिक बिखराव के कारण बहुजन समाज शक्तिहीन है, अधिक संख्यक होकर भी लोकतंत्र में सत्ता की कुर्सी से दूर है। लोकतंत्र में बहुसंख्यकों को सत्ता की कुर्सी से दूर करना धूर्त संस्कृति का परिचायक है। लोकतंत्र में संख्याबल से सत्ता बनती और बिगड़ती है। भारत के लोकतंत्र में विचित्र बात यह है कि भारत का बहुसंख्यक समाज सत्ता की कुर्सी से दूर है। देश में बहुजनों के संख्याबल को देखकर मान्यवर कासीराम जी ने कहा था कि ‘वोट हमारा राज तुम्हारा नहीं चलेगा, नहीं चलेगा।’ इस नारे ने देश के बहुजन समाज को जागरूक किया, सत्ता की तरफ आकर्षित भी किया और बहुजन समाज के जातीय घटकों से हजारों नए नेता भी पैदा हुए, लेकिन वे ज्यादातर सभी टिकाऊ न होकर बिकाऊ हो गए। इन नेताओं ने समाज के लिए न कोई संघर्ष किया और न समाज में संघठनात्म नीति का निर्माण किया। बहुजन समाज आज बिना किसी सामाजिक नीति के इधर-उधर भटक रहा है। सत्ता के लालच में बने नए नेता कभी एक मनुवादी संस्कृति के राजनैतिक नेताओं के पीछे घूमते हैं तो कभी दूसरे मनुवादी संस्कृति के नेताओं के पीछे घूमते हैं। इन सभी नेताओं में मान्यवर साहेब कासीराम जी की तरह ईमानदारी, समाज में संगठनात्मक ढांचे का निर्माण करने की क्षमता नहीं है। ये सभी नए लालची किस्म के नेता अपने व्यक्तिगत स्वार्थ में कभी कांग्रेस के पीछे, तो कभी भाजपा के पीछे लगे रहते हैं।

बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने समाज के लोगों से जोर देकर कहा था कि ‘इस देश को कभी हिन्दू राष्ट्र नहीं बनने देना।’ मगर आज आधे से अधिक राजनैतिक दलों के दलित नेता हिन्दुत्व की वैचारिकी में लिप्त होकर हिंदूवाद को ही आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। बहुजन समाज की जनता को ऐसे नेताओं से पूछना चाहिए कि क्या आप बाबा साहेब के बताए हुए रास्ते का अनुसरण कर रहे हैं? आज बहुजन समाज के नेताओं में ऐसे सीधे व तार्किक प्रश्न पूछने की ताकत नहीं है। बहुजन समाज के लोगों का दुर्भाग्य यह है कि वे किसी भी कीमत पर राजनीति में पहुँचने की नैतिक और अनैतिक कोशिश में है, उन्हें अपने महापुरुषों की शिक्षाओं का न ज्ञान है, और न उनका कहीं मान है, वे किसी भी कीमत पर राजनीति में स्थापित होना चाहते हैं।

बहुजन समाज में आजतक बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर और भगवान बुद्ध से बढ़कर श्रेष्ठ बौद्धिक क्षमता का कोई अन्य व्यक्ति विश्वभर में पैदा नहीं हुआ है, जिनकी बौद्धिक क्षमता को मनुवादी लोग हर रोज अपने पाखंडवादी षडयंत्रों से कमतर करने का काम कर रहे हैं। बहुजन समाज को अपने पुरखों पर गर्व होना चाहिए।

पाखंडवाद से देश की जनता को परहेज करना चाहिए: मनुवादी संघियों का शुरू से ही प्रयत्न रहा है कि किसी भी कीमत पर बहुजन समाज (एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यक) के लोगों को उलझाकर रखो और हर समय उन्हें पाखंडवाद में लिप्त करने का प्रयत्न करते रहो। 25 व 26 जून 2025 के नवभारत टाइम्स में छपा कि दिल्ली की भाजपा संघी सरकार कांवड़ियों के लिए जगह-जगह विशेष प्रबंध करेगी, काँवड़ शिविर में 1200 यूनिट फ्री बिजली देगी, काँवड़ शिविरों में साफ-सफाई की व्यवस्था की जायेगी, हर काँवड़ शिविर लगाने वाली पंजीकृत संस्था को कुछ हजार से लेकर लाखों रुपए का अनुदान भी दिया जाएगा। काँवड़ लगाने वाली जो संस्थाएं पंजीकृत नहीं है उन्हें पंजीकृत कराने का समय व मौका भी दिया जायेगा। ताकि वे निश्चित समय सीमा के अंदर उन्हें पंजीकृत करा सकें, तभी उन्हें अनुदान की राशि का लाभ मिलेगा। ऐसी संस्थाओं के पंजीकरण के लिए सरकार द्वारा विशेष सुविधा व छूट भी दी जा रही है।

दिल्ली की भाजपा संघी सरकार देश की जनता को पहले यह बताये की जब देश का संविधान धर्म निरपेक्षता की बात करता है तो भाजपा संघी सरकार का यह कृत्य क्या संविधान के अनुरूप है? देश में मोदी संघी सरकार है जिसने अपने 11 वर्षों के दौरान संविधान की कभी परवाह नहीं की है, 25 जून 1975 को पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया था। जिसके 50 साल पूरे होने के बाद भी संघी मानसिकता के लोग इन्दिरा गांधी के आपातकाल का बार-बार जिक्र करते हैं लेकिन वे देश की जनता को यह नहीं बता रहे हैं कि देश में पिछले 11 वर्षों से जो अघोषित आपातकाल है, जिसके कारण देश में न नौजवानों के लिए नौकरियाँ हैं, न व्यापार है, न शिक्षा है। दलितों-पिछड़ों व अल्पसंख्यकों पर हर रोज लाखों की संख्या में उत्पीड़न और बलात्कार की घटनाएँ हो रही हैं उनपर मोदी संघी शासन मौन क्यों हैं? सरकार जनता को यह भी बताए। मोदी संघियों की डबल इंजनों की सरकारें देश की भोली-भाली जनता को मूर्ख न समझें चूंकि लोकतंत्र में देश की जनता ही सत्ता की मालिक होती है। इसलिए सरकार को जनता के साथ सभी विषयों पर खुलकर बात करनी चाहिए। अगर वह ऐसा नहीं करती है तो ऐसी सरकार संघियों की होने के साथ-साथ धूर्तों की भी है।

धूर्तों की संघी सरकारों से कैसे बचा जाए? देश के सभी जागरूक लोगों को पता चल चुका है कि संघी मानसिकता की सरकारें किसी भी कीमत पर बाज आने वाली नहीं है, चाहे वह देश की मूर्ख जनता का कितना भी बड़ा नुकसान करे। संघियों की सरकार से छुटकारा पाने के लिए देश की बहुजन जनता को एकता के साथ खड़ा होना होगा और जरूरत पड़ने पर संघर्ष भी करना होगा। आज के एक सोशल मीडिया पोस्ट में देखा गया कि यादव समाज के दो व्यक्तियों ने शिक्षण का कार्य शुरू किया, जो चलने में असफल रहा, तो उन्होंने अपने शिक्षण के कार्य को छोड़ दिया और कथावाचक का कार्य शुरू कर दिया। उनका कथावाचक का धंधा अच्छा चल निकला तब ब्राह्मण समाज के लोगों ने उनसे उनकी जाति पूछी तो उन्होंने अपने को यादव बताया। यादव बताने पर ब्राह्मण समाज के लोग आपे से बाहर हो गए और उनके साथ अभद्र व्यवहार और मारपीट भी की। उनके ऊपर ब्राह्मण जाति की महिला का पेशाब छिड़का गया और उन दोनों व्यक्तियों के पास जो पैसा व सामान था वह भी लूट लिया गया। तथा उन्हीं पर दो आधार कार्ड रखने का मामला भी दर्ज करवा दिया। वहाँ पर इकट्ठा हुए ब्राह्मण समाज के लोगों ने चेतावनी देते हुए कहा कि आप कथावाचक का काम नहीं कर सकते, चूंकि यादव समाज शूद्र वर्ण में आता है। वहाँ से उन्हें मार पीटकर भगा दिया गया। जिसके बाद दोनों यादव कथावाचक अखिलेश के पास पहुंचे। क्योंकि आज कल अखिलेश हर जगह पीडीए की तारीफ करते फिरते हैं।

अखिलेश का पीडीए? वास्तविकता के आधार पर इस देश का पिछड़ा समाज जिसमें यादव समाज भी आता है वह सामंतवादी विचारधारा का ही है। सामंतवादी विचारधारा होने के कारण वे अपने आपको अन्य पिछड़े समाज के जातीय घटकों से श्रेष्ठ मानते हैं जो अपने आपमें अंतरद्वंद और धोखा है। इनकी श्रेष्ठता का कारण सिर्फ एक है कि इनके पास खेती योग्य जमीने हैं। समाज के अन्य पिछड़े समाज के लोग इनकी जमीन पर मेहनत-मजदूरी करके जीविकोपार्जन करते हैं। पूरे देश के तकनीकी कार्य करने वाले लोग जो देश में सबसे विकसित और सम्पन्न होने चाहिए थे वे आज सरकारों की गलत नीतियों के कारण अपने ही देश में भीखमंगे बनकर रह रहे हैं। सामंतवादी लोगों की जमीन पर ये सभी भूमिहीन लोग मेहनत मजदूरी करने के किए विवश हैं। खेती योग्य जमीन का मालिकाना हक पिछड़े समाज जैसे जाट, गुर्जर, अहीर (यादव), पटेल, भूमिहार व अन्य समकक्ष जातियों के लोगों के पास हैं, जिसके कारण उनमें दबंगता और सामंतवादी विचारधारा मजबूत है। इन्हीं दबंग और खेती योग्य जमीन पर मालिकाना हक रखने वाले लोग ही दलित व भूमिहीन लोगों को प्रताड़ित करते हैं और उनकी महिलों के साथ दुराचार भी करते हैं।

सामंतवादी, दुराचारी व्यवस्था से छुटकारा? इसका इलाज आसानी से किया जा सकता है, अगर सरकार की नियत में खोट न हो। देश की ये सभी पिछड़ी जातियाँ, दलित व अन्य अल्पसंख्यक देश में अपनी तकत से बहुजन सत्ता स्थापित करें और देश की सम्पूर्ण कृषि योग्य जमीन व देश के सभी अन्य संसाधनों का राष्ट्रीयकरण सुनिश्चित करें। बहुजन स्वाभिमान संघ देश की सरकार से मांग करता है कि देश की कृषि योग्य भूमि और अन्य सभी सरकारी संसाधनों का राष्ट्रकरण हो। देशवासियों को उनकी योग्यता के आधार पर कार्य करने व आगे बढ़ने का पूरा मौका दिया जाये। ऐसा होने पर देश में महिलाओं के ऊपर हर रोज होने वाले अत्याचार, दलितों व भूमिहीनों पर होने वाले अत्याचारों की घटनाएँ एक साथ समाप्त हो सकती है और देश में सामाजिक सद्भावना और भाईचारा मजबूती के साथ स्थापित किया जा सकता है। प्रजातांत्रिक सरकारों में देशहित और जनहित की भावना एक आवश्यक तत्व है, मोदी संघी सरकारों में यह सब गायब है। संविधान विरोधी सरकारें, देश हित में नहीं हैं।

जय भीम, जय संविधान

Post Your Comment here.
Characters allowed :


01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 16:38:05