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संसद में कायर साबित हुई मोदी सरकार

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2025-08-01 18:57:11

भारत जाति प्रधान देश है, पूरा देश 6743 जातियों में विभक्त है। ये सभी जातीय घटक चार वर्णो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में वर्गीकृत है। चारों वर्णों में ब्राह्मण अपने आपको श्रेष्ठ मानते है। श्रेष्ठता का आधार तार्किक नहीं, पाखंड से भरा हुआ है। यह सिर्फ पाखंड ही नहीं बल्कि अप्राकृतिक भी है। दूसरे वर्ण में भारत के क्षत्रिय समुदाय के लोग आते हैं, जिनका मुख्य कार्य देश की सीमाओं की रक्षा करना बताया गया है। तीसरे वर्ण में वैश्य समाज के लोग आते हैं जिनका मुख्य पेशा व्यापार है। इतिहास से पता चलता है कि भारत 755 वर्षों तक विदेशियों का गुलाम रहा। अशोक के शासन काल के बाद भारत कभी भी एक अखंड राष्ट्र नहीं बन पाया। यहाँ पर सिर्फ छोटे-छोटे राजा थे जो आपस में ही लड़ते रहते थे। ब्राह्मणों ने देश की सम्पूर्ण धन संपदा को यहाँ के मंदिरों में संगृहीत और संरक्षित किया हुआ था। जिसपर समस्त अधिकार मंदिरों में बैठे पुजारियों के पास थे। देश की समस्त जनता नंगी, भूखी और अशिक्षित थी। सभी वर्णों की महिलाओं को शिक्षा और नागरिक अधिकारों से वंचित रखा गया था। देश में शासन व्यवस्था मनुस्मृति के अनुसार बनाई गयी थी। इसलिए ब्राह्मण प्रजाति के लोग अतीत से लेकर वर्तमान तक मंदिर निर्माण में अधिक दिलचस्पी रखते हैं। जनता की निजी और सार्वजनिक भूमि पर मंदिर निर्माण करके ब्राह्मण-पुजारियों का आधिपत्य स्थापित किया जाता है। वर्तमान में जो संघी सरकारें देश में चल रही है वे ब्राह्मणवाद से पूरी तरह संक्रमित है। सभी सरकारें प्रजातांत्रिक सत्ता होने के बाद भी ब्राह्मणी संस्कृति को श्रेष्ठ मानती हैं।

क्षत्रियों की देश रक्षा में भूमिका: ब्राह्मण संस्कृति के वर्गीकरण के अनुसार क्षत्रिय समुदाय के लोगों का कर्तव्य देश की सीमाओं की रक्षा करना और देश पर दुश्मनों द्वारा आक्रमण न होने देना था। परंतु इतिहास के पन्ने पलटने से पता चलता है कि क्षत्रिय वर्ण के लोग अपनी इस जिम्मेदारी को निभाने में हमेशा विफल रहे। देश पर अनेकों बार आक्रमण हुए, मंदिरों में रखी धन संपदा को तत्कालीन क्षत्रियों की मौजूदगी में आक्रमणकारियों द्वारा लूटा गया।

16 दिसम्बर 1971 का दिन हमारे राष्ट्रीय गौरव का क्षण होना चाहिए। यह वह क्षण था जब अछूत वर्ग के व्यक्ति बाबू जगजीवन राम जी ने न केवल इतिहास रचा, बल्कि देश का भूगोल भी बदल दिया। किसी राष्ट्र के जीवन में ऐसे क्षण विरले ही आते हैं। 1971 से पहले, तत्कालीन क्षत्रियों में अपनी भूमि की रक्षा करने की क्षमता नहीं थी। 1948 में, हमने 28,000 वर्ग मील भूमि पीओके को खो दी। 1962 में, हमने 38,000 वर्ग मील भूमि चीन को खो दी। 1965 में, भारत और पाकिस्तान बराबरी पर थे और हमें हाजी पीर से पीछे हटना पड़ा। 1970 में जब युद्ध के बादल मंडराने लगे, तो यह भारत के लिए अपनी सैन्य शक्ति, अपनी प्रतिष्ठा और अपने सम्मान को पुन: स्थापित करने का समय था, जिसकी बागडोर दलित समाज के नेता बाबू जगजीवन राम जी के हाथों में थी। जिनके कारगर नेतृत्व व प्रशासनिक क्षमता ने भारत को प्रचंड सफलता दिलायी।

बाबू जगजीवन राम जी को 1970 में रक्षा मंत्रालय का कार्यभार मिला। उस समय हमारे सैनिक, जवान, अधिकारी, मातृभूमि के लिए सर्वोच्च बलिदान देने के लिए प्रशिक्षित थे। उन्हें वास्तव में किसी दूसरी भूमि के लिए सर्वोच्च बलिदान देने और उसे चुनौती देने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया गया था। लेकिन 1971 की आवश्यकता के अनुसार हमारे सशस्त्र बलों को किसी दूसरी भूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए तैयार रहना नयी शैली का कार्य था।

बाबू जगजीवन राम जी ने शुरू से ही यही काम अपने हाथ में लिया। वे देश भर की हरेक चौकी पर गए और उन्होंने बताया कि हम युद्ध नहीं करेंगे, हमारी संस्कृति आक्रमण की नहीं रही है, लेकिन अगर हम पर युद्ध थोपा गया, तो युद्ध भारत की धरती पर नहीं होगा, हम दुश्मन को पीछे धकेलेंगे और युद्ध दुश्मन की धरती पर ही होगा। यही बात उन्होंने शुरू से अंत तक दोहराई और करके भी दिखाया।

बाबू जगजीवन राम जी हर दूसरे-तीसरे दिन संसद को ब्रीफ कर रहे थे। हर दूसरे-तीसरे दिन वे सार्वजनिक भाषण दे रहे थे और जनप्रतिनिधियों को देश में क्या हो रहा है उससे अवगत करा रहे थे। हमारी युद्ध की तैयारी कैसी है, इस बारे में देश की जनता को बताकर उसे भी जागरूक कर रहे थे। वे भारत के हर व्यक्ति तक पहुँच रहे थे-चाहे वह शहरी हो या ग्रामीण, उन्हें बता रहे थे कि डरने की कोई बात नहीं है, इस अवसर को हम एक ऐतिहासिक युद्ध बनाएँगे।

भारत की रक्षा का मतलब देश के हर नागरिक का, देश और उसके सम्मान की रक्षा के लिए उठ खड़ा होना भी है। बाबू जगजीवन राम जी एक ही समय में सशस्त्र बलों का मनोबल बढ़ा रहे थे और जनता को युद्ध के लिए तैयार भी कर रहे थे।

पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया। सेना तभी आत्मसमर्पण करती है जब उसके पास सैनिक न हो या हथियार-गोला-बारूद भी न हो। यहाँ 93,000 सैनिक थे और गोला-बारूद भी था तब भी पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया। वर्तमान में चल रहे संसदीय सत्र में देश ने रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के भाषण को देखा, जिसको सुनकर देश की जनता को लगा कि राजनाथ सिंह में देश की रक्षा करने की न क्षमता है, न उनमें दूरदृष्टि और सटीक रणनीति है। राजनाथ सिंह संसद में खड़े होकर विपक्ष को जवाब देने में लड़खड़ाते दिखे, उनमें आत्मा विश्वास की कमी साफतौर पर नजर आ रही थी। ऐसा शायद इसलिए भी हो सकता है कि मोदी शासन में मंत्री सिर्फ नाम के हैं, मंत्रियों के विभागों से संबंधित फैसले मोदी खुद ही लेते हैं।

1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध और वर्तमान में पहलगाम आतंकी घटना का जवाब देने वाले युद्ध में महत्वपूर्ण फर्क यह है कि 1971 में देश की कमान श्रीमति इन्दिरा गांधी के हाथों में थी और आज देश की कमान संघी मानसिकता के मोदी रूपी कायर हाथों में हैं। 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में जो भारत की सेना ने कारनामा किया था उसमें तब के रक्षामंत्री बाबू जगजीवन राम जी सेना और देश की जनता के साथ बराबर संपर्क में थे, वे लगातार सेना का मनोबल बढ़ा रहे थे। जिसके बल पर भारत ने बाबू जगजीवन राम जी के रक्षामंत्री रहते हुए युद्ध सम्मान के साथ जीता ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान के दो टुकड़े भी करा दिये थे। देश के बहुत सारे नागरिकों व सैनिकों को 1971 के युद्ध की कुछेक घटनाएँ याद होंगी। उस समय भी अमेरिका प्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान के साथ था और उसने अपना छठा बेड़ा भारत को डराने के लिए अरब सागर में लाकर खड़ा कर दिया था। लेकिन अमेरिका की ऐसी हरकतों को देखकर भारत का नेतृत्व न तो सहमा और न डरा था बल्कि उसने अपनी नेतृत्व की क्षमता और शक्ति को कारगर रूप से इस्तेमाल करके पाकिस्तान को हराया था। यह युद्ध पाकिस्तान की भूमि पर ही लड़ा गया था जैसा कि शुरू में उस समय के रक्षामंत्री बाबू जगजीवन राम जी ने कहा था, उन्होंने वह सच करके दिखाया था, जबकि आज के मोदी भक्त रक्षामंत्री राजनाथ सिंह संसद में बोलते हुए डरे, सहमें अंदाज में विपक्ष के सवालों के जवाब देने में लड़खड़ाते और मिमयाते नजर आए। राजनाथ सिंह क्षत्रिय समाज से हैं और देश के रक्षामंत्री भी हंै जो देश की रक्षा का भार संभालने में मोदी की छाया के कारण अक्षम सिद्ध हो रहे हैं।

विपक्षी सवालों के आगे मोदी अंधभक्त फेल: आॅपरेशन सिंदूर को लेकर संसद में हुई बहस के दौरान वर्तमान रक्षामंत्री राजनाथ सिंह विपक्ष द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देने में अक्षम व अतार्किक नजर आए। उन्होंने अपने उत्तर में विपक्ष को बताया कि परीक्षा में रिजल्ट ही महत्वपूर्ण होता है यह नहीं कि परीक्षा देते वक्त कितनी पेंसिल टूटी और कितने पेन टूटे। उनका यह बयान रक्षामंत्री पद की गरिमा के अनुरूप नहीं था। विपक्ष के नेता गौरव गगोई ने जब सत्ता पक्ष से सवाल किया कि पहलगाम में आतंकी कैसे आए तो रक्षामंत्री ने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया? विपक्ष के नेता गौरव गगोई ने सरकार से जब पूछा कि आॅपरेशन सिंदूर क्यों रोका गया? पहलगाम में 26 बेगुनाह नागरिकों की हत्या करने वाले आतंकवादी अब तक बाहर क्यों हैं? रक्षामंत्री ने गगोई को बताया कि हमारा मकसद युद्ध नहीं था, गगोई ने प्रति-उत्तर में कहा, क्यों नहीं था? यह होना चाहिए था? गौरव गगोई ने पहलगाम हमले में सुरक्षा चूक की नैतिक जिम्मेदारी गृहमंत्री अमित शाह को लेनी चाहिए थी इस सवाल का जवाब न देकर राजनाथ सिंह और अमित शाह दोनों बगले झाँकते नजर आए। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह खिसयायी बिल्ली की तरह खड़े तो रहे, परंतु उनमें आत्म-सम्मान और नैतिकता का अभाव था।

संघियों का इतिहास है कि वे न तर्क और न सच्चाई का मुकाबला करते हैं, बल्कि वे छिपे ढंग से अपने षड्यंत्रकारी मंसूबों को आगे बढ़ाते हैं। संघी मनुवादी लोग भीरु किस्म के होते हैं वे कभी सीधी लड़ाई न तो लड़ते हैं और न लड़ाई लड़कर विजयी होते हैं। हमेशा उनका कार्य षड्यंत्रकारी तरीकों से जनता में छलावे और अफवाह फैलाकर जनता को विचलित और भयभीत करने का होता है। इतिहास गवाह है कि मनुवादी संघी मानसिकता वाले लोगों ने कभी न कोई युद्ध जीता है, न कभी देश की जनता के लिए कल्याणकारी अभियान चलाये हैं।

संसद में तीन दिन चले आॅपरेशन सिंदूर की चर्चा ने साफ कर दिया है कि मोदी संघी सरकार की भारत के इतिहास में यह एक बहुत बड़ी राजनीतिक और नैतिक हार है परंतु बेशर्म मानसिकता के मनुवादी संघी लोग न तो उसको जनता के समक्ष खड़े होकर स्वीकार करेंगे, वे हमेशा सच्चाई से किनारा करते हुए दिखेंगे। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने 26-27 बार पूरे विश्व को बताया कि भारत-पाक के बीच सीज फायर मैंने कराया है। ट्रम्प द्वारा 26-27 बार यह बात दोहराई जाने के बाद भी वर्तमान सरकार के संघी मानसिकता के मुखिया मोदी में यह भी साहस नहीं दिखा कि वे संसद में खड़े होकर ट्रम्प को खुली चेतावनी देकर यह कह सके कि ट्रम्प झूठ बोल रहे हैं, इससे साफ हो जाता है कि ट्रम्प झूठ नहीं बोले रहे हैं बल्कि झूठ मोदी के अंदर उनकी संघी मानसिकता के गर्भ में छिपा है। यह पहली बार नहीं है मोदी बार-बार ऐसा करके इस देश को अपनी छलावामयी रणनीति से धोखा देने का काम कर रहे हैं। जिसके कारण भारत की छवि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खराब हो रही है।

पहलगाम आतंकी हमले के बाद पूरे देश-विदेश की जनता ने देखा कि भारत की विदेश नीति पूर्णतया असफल और बेसहारा है। भारत के पड़ोसी व अन्य देशों में से कोई भी भारत के साथ नजर नहीं आये जबकि भारत के पड़ोसी व मित्र देश भी पाकिस्तान के पाले में खड़े नजर आए। मोदी सरकार में अगर अभी भी कोई लोक-लिहाज है तो वह देश को बताए कि भारत के साथ दुनिया का एक भी देश खड़ा नजर क्यों नहीं आया? विश्व के सभी देश पाकिस्तान के साथ खड़े हुए क्यों दिखे? मोदी संघी सरकार ने पक्ष और विपक्ष से कुछेक संघी मानसिकता के लोगों को छांटकर विदेशी दौरों पर भेजा और उनसे कहा कि विदेशों में जाकर भारत का पक्ष रखो उन्होंने कुछ हद तक ऐसा किया भी लेकिन स्वतंत्र आंकलन के अनुसार हम कह सकते हैं कि विदेशों में भेजे गए प्रतिनिधियों से भी भारत की विदेश नीति को कोई फायदा नहीं हुआ, बल्कि विदेशों में भेजे गए पक्ष-विपक्ष के प्रतिनिधियों पर जो खर्च हुआ, वह भारत की जनता का पैसा था, जो बिना किसी सकरात्मक परिणाम के व्यर्थ चला गया है।

भारतीय जनता को मोदी संघियों के छलावे से सावधान होकर उनके दिखाये गए छलावामयी भटकाव से भटकना नहीं चाहिए। देश की जनता व देश हित को सर्वोपरि मानना चाहिए, व्यक्ति को नहीं। मोदी आज देश में अपने अंधभक्तों की भीड़ खड़ी करके गोदी मीडिया और अन्य सरकारी तंत्र के माध्यमों से अपनी झूठी सफलता का डंका बजवाकर, अपनी विफलता को झूठ से ढकने का काम कर रहे हैं। देश की जनता को मोदी के ऐसे अनैतिक छलावों से सावधान और सजग रहना चाहिए। देश की रक्षा का भार हमेशा यहाँ के मूलनिवासियों के योग्य रणनीतिकारों को ही सौंपना चाहिए।

जय भीम, जय मूलनिवासी, जय संविधान

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 16:38:05