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कांवड़ पर फूल, शिक्षा पर FIR

पाखंड को बढ़ावा देकर अभिव्यक्ति की आजादी को प्रताड़ित और प्रतिबंधित कर रहीं सरकारें
News

2025-07-18 17:38:29

नई दिल्ली। भारतीय संविधान का अनुच्छेद-19 हर नागरिक को अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार प्रदान करता है और अनुच्छेद-21 में मनुष्य को गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार है। अभी हाल ही में मनुवादी भाजपा के गुंडे देश भर में इन्दिरा गांधी के आपातकाल को लेकर शोर मचा रहे थे कि श्रीमति गांधी ने आपातकाल लगाकर नागरिकों की अभिव्यक्ति को पूरी तरह से कुचल दिया था और संविधान पर बड़ा कुठाराघात हुआ था। बरेली की ताजा घटना ने देश के सभी संघी मानसिकता के मनुवादियों को आईना दिखाया है कि जिस अभिव्यक्ति की आजादी का संघी पिछले 50 वर्षों से रोना रोते आ रहे हैं, वह अब उत्तर प्रदेश के संघी शासन में उससे भी भयंकर रूप धारण करके जनता के सामने आ रहा है। एमजीएम इंटर कॉलेज बहेड़ी जिला बरेली उत्तर प्रदेश में एक सुशिक्षित शिक्षक डॉ. रजनीश गंगवार स्कूल में जब छात्रों को अपनी लिखी कविता सुना रहे थे, कविता के कुछ बोल इस प्रकार थे- काँवड़ लेने मत जाना, तुम ज्ञान के दीप जलाना।

शिक्षा है जग-जग की जननी

उसका दूध पीयो तुम

धूर्त बहुत है कपट परपंची

उनका जाल समझना

काँवड़ लेने मत जाना

तुम ज्ञान के दीप जलाना



मानवता की सेवा करके

सच्चे मानव बन जाना

शिक्षा है जग-जग की जननी

उसका दूध पीयो तुम

सतकर्मो का रहस्य बड़ा है

उसका रूप बनो तुम



सत्य, आचरण, प्रेम, परोपकार सब जीवन के साथी

ज्ञान विवेक का दीप जलाओ

यही तुम्हारी थाती

धूर्त बहुत है कपट परपंची

उनका जाल समझना

मन का मैल ज्ञान से धोकर

उसका महत्व समझना

मानवता की सेवा करके

सच्चे मानव बन जाना

काँवड़ लेने मत जाना

तुम ज्ञान के दीप जलाना-2



राजनीति और कर्मनीति

अब पूंजीवादी युग है

जनता की है धर्म अफीम इससे बौराया जग है

अंधी आस्था मिथ्या आडंबर है

इसको मार भगाना

ज्ञान बोध की ज्योत जगाकर

खुद दीपक बन जाना

ज्ञान, साधना, त्याग, तपस्या,

इन सबसे मेल बढ़ाना

शिक्षा है हथियार तुम्हारा

जन-जन तक पहुंचाना

इस कविता में कुछ भी असंवैधानिक या अमर्यादित नहीं था फिर भी प्रदेश की योगी सरकार ने अपने मनुवादी अहंकार में इस कविता को लेकर हंगामा खड़ा कर दिया और योगी के गुंडों ने प्रतिष्ठित शिक्षक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी। शिक्षक के नाम के साथ उनका सरनेम गंगवार जुड़ा हुआ है जो मनुवादी वर्गीकरण के हिसाब से एक पिछड़ी जाति है। शिक्षक हिंदी साहित्य के एक सुसंस्कृत शिक्षक है इसलिए शायद उन्होंने इस ज्ञान युक्त कविता की रचना की और समाज को जागरूक करने के उद्देश्य से स्कूल के बच्चों को अपनी कविता सुनाई।

कविता में ‘काँवड़ लेने मत जाना’ शब्द सम्मलित होने के कारण हिन्दुत्व की वैचारिकी के गुंडों ने शिक्षक के ऊपर संबन्धित थाने में एफआईआर दर्ज करायी।

जिसे देखकर बहुजन समाज के सभी जातीय घटकों के राजनैतिक महत्वाकांक्षा रखने वाले लोगों में दिखावटी रोष और उबाल सोशल मीडिया पर दिखाया जा रहा है अगर बहुजन समाज के नेताओं में दिखावटी रोष नहीं होता तो अभी तक बहुजन समाज के ये नेता जैसे- बहन कु. मायावती, अखिलेश यादव, अनुप्रिया पटेल, पल्लवी पटेल, ओ.पी. राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य तथा सैंकड़ों की तादाद में बहुजन समाज से जुड़े विधायक और सांसदों को शिक्षक के पक्ष में लठ के साथ सड़क पर उतरकर जोरदार विरोध प्रदर्शन करना चाहिए था और मनुवादी गुंडों को अपनी शक्ति और संख्या का अहसास भी करा देना चाहिए था, लेकिन ऐसा कहीं पर भी दिखाई नहीं दे रहा है। इसका मतलब साफ है कि बहुजन समाज के ये सभी तथाकथित राजनेता मनुवादी मानसिकता के पैदायशी गुलाम हैं। बहुजन समाज के सभी जातीय घटकों को अपने इन नेताओं को धिक्कारना चाहिए, इनका तिरस्कार करना चाहिए, और इनका समर्थन भी नहीं करना चाहिए।

मनुवादी संघी संस्कृति की मोदी सरकार ने अपने शासन काल के दौरान बहुजन समाज के जातीय घटकों से कुछेक सबसे श्रेष्ठ मानसिक गुलाम चुनकर उन्हें मोदी शासन में राज्य मंत्री या मंत्री का दर्जा दे दिया है। लेकिन साथ में उन्हें हिदायत भी दी गई है कि आपको अपने समाज के लिए कुछ भी करने और बोलने का अधिकार नहीं है। बहुजन समाज से बनाये गए ये मंत्री मोदी शासन में अपने समाज में घूमकर यह प्रचार कर रहे हैं कि देखो मोदी संघी सरकार ने हमारे जातीय घटक को मान-सम्मान देकर समाज के व्यक्ति को मंत्री बनाया है इसलिए हमारे समाज का एक-एक वोट उन्हीं को जाना चाहिए। बहुजन समाज की जनता को यह समझना होगा कि ऐसे गुलाम मानसिकता के लोगों को मंत्री बनाने से समाज का सम्मान नहीं होता है, वह तो सिर्फ दिखावे के तौर पर हर जातीय घटक को अपने मनुवादी जाल में फँसाने का एक षड्यंत्रकारी जाल है। बहुजन समाज के सभी जातीय घटकों को ऐसे षड्यंत्रकारी छलावों से सावधान रहना चाहिए और साथ में अपनी जनता को जागरूक भी करना चाहिए। याद रखो मनुवादी संघी लोग जमीन के ऊपर दिखाई नहीं देते हैं, वे अपने सभी षड्यंत्रकारी कार्यक्रमों को जमीन की सतह के नीचे रहकर ही अदृश्यता व समग्रता के साथ बहुजन समाज की जागरूकता और सम्पन्नता को ध्वस्त करते हैं।

वर्तमान सामाजिक परिदृश्य को देखते हुए समाज की दलित व जागरूक जनता को एकजुटता के साथ मनुवादियों की षड्यंत्रकारी नीतियों को समझना चाहिए और उनका संज्ञान लेकर पूरे समाज के जातीय घटकों को एकजुट होना चाहिए। आपस की क्रमिक ऊंच-नीच की भावना से सभी को मुक्त होना चाहिए, सभी एक ही मूल के लोग हैं, मनुवादी-संघियों ने क्रमिक ऊंच-नीच की व्यवस्था बनाकर समाज में अपना वर्चस्व व सत्ता स्थापित करने के लिए बहुजन समाज का जातीय घटकों में विभाजन किया है। हम सभी को इस मनुवादी षड्यंत्र को समझना होगा और क्रमिक ऊंच-नीच के भेदभाव से मुक्त होना होगा। तभी हमारा पूरा समाज समृद्ध और शक्तिशाली बन सकेगा और देश से ब्राह्मणवादी सत्ता समाप्त हो सकेगी। देश में ब्राह्मणवादी व्यवस्था और सत्ता स्थापित करने के लिए दलित समाज के जातीय घटकों का ही अधिक योगदान दिखता है, इसलिए उन्हें दलितों का वोट चाहिए लेकिन मनुवादी उनके संवैधानिक अधिकारों को नहीं देना चाहते हैं।

क्या ऐसी अपमानजनक घटनाओं से सबक लेगा पिछड़ा समाज? भारत में बहुजन समाज की पिछड़ी जातियों की कम समझ के कारण पूरा समाज समय-समय पर मनुवादियों द्वारा प्रताड़ित होता आ रहा है। दलित समाज के लोगों ने पिछड़ी जाति के लोगों को संवैधानिक अधिकार दिलाने के लिए पूरा संघर्ष किया और सहयोग भी दिया। लेकिन उनमें गहराई तक व्याप्त क्रमिक ऊंच-नीच की भावना उन्हें यह नहीं समझने देती कि पिछड़ी जातियाँ और दलित जातियाँ सब एक ही मूल की संताने हैं। ब्राह्मणी संस्कृति ने अपने वर्चस्व और सत्ता की खातिर पिछड़ी व दलित जातियों को क्रमिक ऊंच-नीच की व्यवस्था में बांध दिया है। क्रमिक ऊंच-नीच की व्यवस्था के कारण पिछड़ी जातियों से संबंधित लोग अपने आपको दलित जातियों से ऊंचा समझते हैं और मनुवादी लोगों के साथ मिलकर दलितों का उत्पीड़न और शोषण भी करते हैं। पिछड़ी जातीय घटकों के लोग अपनी बौद्धिक कमतरता के कारण आज तक यह समझ नहीं पाये हैं कि तुम्हारे नागरिक व संवैधानिक अधिकारों के लिए जो इस देश में संघर्ष हुआ है वह दलित जातीय घटकों के जागरूक व नायकों द्वारा ही किया गया है। पिछड़ी जातीय घटकों को पता होना चाहिए कि महात्मा ज्योतिबा फुले जो पिछड़ी जाति में आने वाली माली (सैनी) जाति से संबंधित थे जिन्होंने इस देश में पिछड़ी जातियों के लोगों को जागरूक करने का बीड़ा उठाया और अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को देश की प्रथम महिला शिक्षिका बनाया। भारत में पिछड़ी जातीय घटक से आने वाले महात्मा ज्योतिबा फुले ऐसे पहले शक्स हंै जिन्होंने मनुवादी/ब्राह्मणवादी संस्कृति के शोषण व उत्पीड़न के खिलाफ देश में बिगुल बजाया और ब्राह्मणवाद का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने देश में अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर पिछड़े व दलित समाज के लोगों को पढ़ने और पढ़ाने के लिए 48 स्कूलों की स्थापना की थी। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने अपने तीन गुरु बताए हैं पहले-तथागत बुद्ध, दूसरे संत कबीर दास, और तीसरे महात्मा ज्योतिबा फुले। पिछड़ी जातीय घटकों से आग्रह किया जाता है कि वे अपनी और ब्राह्मणी संस्कृति की सच्चाई को समझें और अपने आपको शारीरिक और बौद्धिक बल से विकसित करें। मनुवादी व ब्राह्मणवादी संस्कृति के लोगों का पिछलग्गू न बनकर काँवड़ न लेने जाएं।

बहुजन स्वाभिमान संघ की अपील:

देश में बढ़ते हिन्दुत्व की वैचारिकी के आतंकी परिदृश्य को देखकर बहुजन स्वाभिमान संघ सभी दलित (एससी) जातीय घटकों से परस्पर सहयोग और एकजुटता की अपेक्षा रखता है। बहुजन समाज के सभी जातीय घटक ठोस रूप से एक साथ मजबूती के साथ एकजुट होकर अपने दुश्मनों (मनुवादी) को कड़ा संदेश दें कि हम सब दलित (एससी) एक हैं, और एक ही रहेंगे; हम सभी एकजुटता के साथ प्रतिज्ञा करते हैं कि जब तक मनुवाद की वैचारिकी की आतंकवादी घटनाएँ दलितों के साथ पूर्ण रूप से घटनी बंद नहीं हो जाती, तब तक पूरा दलित (एससी) समाज मनुवाद की वैचारिकी वाले लोगों को न अपना वोट देगा, न उनके तथाकथित पाखंडी, धार्मिक आयोजनों में शामिल होगा। काँवड़ जैसी अभद्र तथाकथित धार्मिक यात्रा में न कोई सहयोग देगा और न भाग लेगा। भारत का सम्पूर्ण दलित (एससी) समाज मनुवादी आतंकियों के खिलाफ एकजुट रहने के लिए संकल्पबद्ध है।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 16:38:05