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गाँवों की तरफ बढ़ रहा हिंदुत्व की वैचारिकी का जहर

प्रकाश चंद
News

2025-04-25 17:46:26

भारत की संरचना गाँवों और शहरों को मिलाकर बनी है। आजादी के समय तक करीब 80 प्रतिशत जनता गाँव में बसती थी। आजादी के बाद देश में शहरीकरण का विकास तेजी से हुआ। इस विकास को देखकर शहरों व उसके आसपास बढ़े-बढ़े शिक्षण संस्थान व उद्योग धंधे स्थापित हुए। जिसे देखकर देश की जनता रोजगार और शिक्षा पाने के लिए शहरों की तरफ आकर्षित हुई और यहीं पर बसकर रह गई। परिणामस्वरूप भारत की जनसांख्यिकी में समय अंतराल के कारण कुछ बदलाव हुआ और आज की स्थिति ऐसी बन गई है कि 65-70 प्रतिशत आबादी गाँवों में हैं और 30-35 प्रतिशत लोग शहरों में हैं।

गाँवों की स्थापना किसी जाति या धर्म के आधार पर नहीं: गाँव के इसिहास को ठीक से समझने के लिए अगर पीछे जाकर देखते हैं तो पाते हैं कि गाँवों की स्थापना किसी एक जाति या कुछेक जातियों के आधार पर नहीं हुई है। गाँव की आधारभूत संरचना में बसे वहाँ के लोग बहुत सारे संप्रदायों, धर्मों या जातियों के आधार पर मिलते हैं। जनसांख्यिकी के आधार पर किसी भी गाँव में एक जाति या धर्म आधारित संख्या अधिक हो सकती है इसका मतलब यह नहीं है कि वह गाँव अधिसंख्यक जाति का गाँव कहलाएगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछेक जिलों में ऐसा देखने को मिल रहा है कि गाँव के नाम की पट्टी के साथ वहाँ की दबंग और सामंती सोच वाली जातियों ने गाँवपट्टी के नाम के साथ जाति सूचक नाम भी लिखा हुआ है। इस तरह की संस्कृति का अस्तित्व पश्चिमी उत्तर प्रदेश या देश के अन्य गाँवों में पहले कभी नहीं देखा जा रहा था। परंतु जब से हिंदुत्ववादी वैचारिकी की सरकारें देश में आयीं है तब से सड़कों के नाम बदलना, गली-मोहल्लों के नाम बदलना, कस्बों व शहरों के नाम बदलना एक आम चलन सा बन गया है। हिंदुत्व की वैचारिकी की जातिवादी/धार्मिक सोच अभी तक शहरों व कस्बों तक ही सीमित थी। परंतु अब इसका फैलाव गाँवों की तरफ भी देखा जा रहा है। हिंदुत्व की वैचारिकी की सोच मनुवादी सामाजिक व्यवस्था पर विश्वास करती है और वह उसी सोच के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में भी उसी प्रकार की सामाजिक व्यवस्था स्थापित करना चाहती है। यह सोच देश की खुशहाली के लिए वर्तमान और भविष्य के लिए अच्छा संदेश नहीं देती है। भारत का वर्तमान सामाजिक ताना-बाना पहले ही 6743 जातियों में बंटा हुआ है। जातियों का निर्माण देश में ब्राह्मणी संस्कृति के यूरेशिया के आये आर्य (आज के ब्राह्मण) ने भारत की जनसांख्यिकी को जातियों में बाँटकर अपने लिए सुरक्षा कवच तैयार किया। चूंकि ये यूरेशिया से आये आर्य अधिक संख्या में नहीं आये थे वे कम संख्या में ही यहाँ आए थे जिनकी संख्या आज भी देश की जनसांख्यिकी में 3 प्रतिशत के आसपास ही है। उन्होंने यहाँ आकर अपने को सुरक्षित रखने के लिए तथा यहाँ पर अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए पूरे समाज को चार वर्णों-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और 6743 जातियों में विभक्त किया। इस सामाजिक विभक्तिकरण के पीछे की षड्यंत्रकारी मंशा यह रही थी कि अगर हमको यहाँ के मूलनिवासियों पर सत्ता स्थापित करनी है तो जाति व्यवस्था को ईश्वरीय देन बताकर यहाँ की जनता के मस्तिष्क में उतारना होगा। जिसका प्रतिफल आज इस देश का हर नागरिक देख रहा है। कम समझ और कम शिक्षित लोग महिला हो या पुरुष वे सभी धार्मिक उत्सवों मेलों, कथाओं, सत्संगों आदि में जाकर ब्राह्मण पुजारियों से यही सुनते हैं कि जातीय व्यवस्था ईश्वरीय देन है इसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता। यहाँ के राजनैतिक और सामाजिक नेताओं ने भी 20 वीं सदी के मध्य में लोगों से यही बताना शुरू किया कि जाति व्यवस्था ईश्वरीय देन है, इसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता है। देश में प्रख्यात व सबसे अग्रणीय माने जाने वाले नेता मोहनदास करमचंद गांधी व उनके जैसे अनेकों संघी साथी देश की कम समझ व अशिक्षित जनता को यही बताते रहे कि जाति-व्यवस्था हिन्दू धर्म का अभिन्न अंग है। इसी को लेकर गांधी ने गोलमेज सभा में बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का पुरजोर विरोध किया था। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने अपने बौद्धिक बल व तर्कों के आधार पर ब्रिटिश सरकार के बहुत सारे मंत्री व भारत से गए विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों के सामने खुले तौर पर चेतावनी देते हुए कहा था कि भारत का दलित (एससी) किसी भी प्रकार से हिन्दू कहे जाने वाले धर्म का अंग नहीं है। ये सभी लोग (एससी) यहाँ के अति विशिष्ट अल्पसंख्यक वर्ग के लोग है। जिनके साथ ब्राह्मणी संस्कृति के लोग नफरत और भेदभाव करते हैं। अंग्रेजी शासकों ने बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की बात को मानकर शेड्यूल कास्ट के व्यक्तियों के लिए कम्युनल अवार्ड का प्रावधान किया था। जिसमें शेड्यूल कास्ट के व्यक्तियों को दो वोट देने का अधिकार था, वे एक वोट का इस्तेमाल सुरक्षित सीटों से लड़ रहे उम्मदीवारों को वोट देकर चुन सकते थे और दूसरी वोट का अधिकार अनारक्षित सीट के लिए इस्तेमाल कर सकते थे। लेकिन कांग्रेस के महान कहे जाने वाले नेता गांधी ने दलित जातियों को नुकसान पहुँचने के उद्देश्य से अंग्रेजी शासन से मिले कम्युनल अवॉर्ड का विरोध करते हुए आमरण अनशन की घोषणा की थी।

अगर वास्तविकता के आधार पर तथ्यों को ठीक से जाँचा-परखा और समझा जाये तो जितना नुकसान गांधी ने शेड्यूल कास्ट के अंतर्गत आने वाली जातियों का किया उतना आजतक किसी दूसरे व्यक्ति ने नहीं किया।

गांधी ने ग्राम स्वराज का सिद्धांत दिया लेकिन वहाँ पर भी वे सामंतवादी विचारधारा के गुंडों को ही स्थापित करना चाहते थे। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर त्रिस्तरीय शासन व्यवस्था के विरोधी थे। चूंकि उनका विश्वास था कि गाँव में बसने वाले शेड्यूल कास्ट व अति पिछड़ी जाति के लोग-जैसे नाई, कुम्हार, गडरिये, लौहार, धोबी, बढ़ई, पटेल, मौर्य, कुशवाहा अन्य समकक्ष जातियों के लोग सामंतवादी वैचारिकी वाले लोगों की भूमि पर ही कृषि संबंधी कार्य करके अपनी जीविका चलाते हैं। और ये सभी सभी लोग ज्यादातर भूमिहीन हैं। सामंती विचारधारा के जमींदार अपने यहाँ खेती का काम करने वाले लोगों का शोषण करते हैं। इसलिए बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर त्रिस्तरीय राज्य व्यवस्था के पक्ष में नहीं थे। आज जो गाँव में जाति सूचक शब्दों का उभार दिख रहा है वह शायद मनुवादी संघियों द्वारा शहरों, कस्बों, सड़कों आदि की नाम बदलने की संस्कृति से ही प्रेरित है।

समस्या का समाधान: वास्तव में गाँव के नाम के साथ जाति सूचक शब्द को स्थापित करना ब्राह्मणी संघी मानसिकता की ओर इशारा करता है परंतु यह विचार ग्रामीण संरचना के अनुरूप न होकर मानवता विरोधी मानसिकता को ही प्रदर्शित करता है। आज सभी भारतवासी लोकतांत्रिक व्यवस्था से प्रशासित है जिसमें देश की जनता ही सरकार है और देश की सरकार बनाने में जनता द्वारा अपनी वोट के द्वारा सरकार के निर्माण में प्रत्यक्ष योगदान है। इसलिए देश में देश के लोग और संविधान सर्वोपरि है। चूंकि देश का शासन-प्रशासन देश के संविधान द्वारा ही संचालित होता है। इसलिए सभी देशवासियों से निवेदन है कि वे अपने अमूल्य वोट के द्वारा देश में जातिवादी मानसिकता को बढ़ने से रोकें चूंकि आज देश में मनुवादी संघी मानसिकता के लोग जातिवाद को अधिक बढ़ावा दे रहे हैं और जो लोग ग्रामीण क्षेत्रों में कम संख्या बल में निवास करते हैं उनके अधिकारों का हनन भी कर रहे हैं। पहला वचन हम सभी शेड्यूल कास्ट व अत्यंत पिछड़ी जातियों के लोगों से अपील करते हैं कि वे सभी आपस में एकजुट हों और साथ में मिल-बैठकर अपने समाज के सभी लोगों की सहमति के आधार पर एक अच्छे और ईमानदार व्यक्ति को सर्वसम्मति से चुनें और उसे ही वोट व अन्य प्रकार का योगदान देकर विजयी बनाएं। दूसरा वचन आवश्यक विचार यह है कि समाज के वे सभी व्यक्ति चाहे वे किसी भी शेड्यूल कास्ट व अति पिछड़ी जातियों से हों, वे सभी मिलकर यह प्रतिज्ञा लें कि हम अपने इन सभी समाज के लोगों द्वारा नामित व्यक्ति को ही वोट करेंगे और उसे ही विजयी बनाएँगे। ऐसा करने के लिए चाहे हमें कोई भी कुर्बानी करनी पड़े, हम उसके लिए तैयार रहेंगे, हम किसी भी छलावे-बहकावे में नहीं आएँगे और न हम 5 किलो फ्री के अनाज या राशन के लालच में अपनी कीमती वोट किसी के कहने पर नहीं देंगे। तीसरा वचन हम किसी भी प्रत्याशी द्वारा दिये जा रहे लालच या प्रलोभन में आकर अपना वोट उसे नहीं देंगे। चौथा वचन हम अपना कीमती वोट शराब, मादक पदार्थ या अन्य नशे में आकर किसी प्रत्याशी को नहीं देंगे, समाज द्वारा जो तय कर दिया जाएगा उसी पर चलकर अपने ही प्रत्याशी को विजयी बनाएँगे। पाँचवां वचन हम अपना कीमती वोट जो बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के अथक परिश्रम और प्रयास से हमको मिला है उसको हम 500 रुपये के लालच में किसी भी धन्नासेठ को नहीं बेचेंगे। छठा वचन जातिवादी व सांमती सोच वाले प्रत्याशियों को वोट न देने का संकल्प लें। हम आशा करते हैं की बहुजन समाज उपरोक्त बातों को आत्मसात करते हुए उनका अनुसरण करेगा और समाज के अम्बेडकरवादी, कर्मठ, निष्ठावान, ईमानदार व संघर्षशील उम्मीदवारों को जितवाने के लिए हर संभव प्रयास करेगा।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 16:38:05